उद्देश्यसे विलग किया जा रहा है। नये भारतीयोंका देशमें प्रवेश रोका जा रहा है। इतना ही नहीं, बल्कि ट्रान्सवालके निवासियोंपर निम्न असाधारण परेशानियाँ लाद दी गई हैं :
(क) अध्यादेशको अमल में लाने के बारेमें कोई प्रकाशित नियम नहीं है।
(ख) यह लागू करनेवाले अधिकारियोंकी सनक और पूर्वग्रहके अनुसार बदलता रहता है। इसलिए आजका तौर-तरीका इस प्रकार है :
(१) जो भारतीय युद्धके पहले ट्रान्सवालमें थे और जो पंजीयन के ३ पौंड दे चुके हैं उन्हें भी, जबतक वे पूरी तरह यह सिद्ध नहीं कर पाते कि वे यहाँसे युद्ध शुरू हो जानेपर गये थे वापस नहीं आने दिया जाता।
(२) जिन्हें ट्रान्सवालमें आने दिया जाता है उन्हें अपनी अर्जियोंके अतिरिक्त अनुमतिपत्रों-पर भी अपने अँगूठोंके निशान देने पड़ते हैं और जब-जब वे ट्रान्सवालमें आते हैं, उन्हें ऐसा करना पड़ता है। अपनी स्थिति और इस तथ्यके बावजूद कि वे अंग्रेजीमें अपने हस्ताक्षर कर सकते हैं या नहीं यह प्रत्येक भारतीयपर लागू होता है। एक इंग्लैंड होकर आये हुए भारतीय सज्जनको जो अच्छी तरह अंग्रेजी बोलते हैं और जाने-माने व्यापारी हैं, दो बार अँगूठेका निशान देना पड़ा।
(३) ऐसे भारतीयोंकी पत्नियों और बारह सालसे कम उम्र के बच्चोंको अब अलग अनुमतिपत्र लेने पड़ते हैं।
(४) ऐसे भारतीयोंके बारह सालके या उससे ज्यादा उम्र के बच्चोंको अपने माता-पिताके साथ आने अथवा रहने नहीं दिया जाता।
(५) भारतीय व्यापारियोंको बाहरसे भरोसेके मुनीम या प्रबन्धक बुलानेकी इजाजत नहीं मिलती — जबतक वे लोग उक्त पहली धाराके अन्तर्गत न आते हों।
(६) जिन्हें आनेकी इजाजत मिलती भी है उन्हें प्रवेशके लिए महीनों रुकना पड़ता है।
(७) सम्भ्रान्त भारतीयोंको अस्थायी अनुमतिपत्र देनेसे भी इनकार कर दिया जाता है। श्री सुलेमान मंगा जो लन्दनमें वकालत पढ़ रहे हैं ट्रान्सवालके मार्गसे डेलागोआ-वे जाना चाहते थे। उन्हें ब्रिटिश प्रजा मानकर इसकी इजाजत नहीं दी गई। जब यह मालूम हुआ कि वे पुर्तगाल राज्यकी प्रजा हैं तब स्पष्ट ही अन्तर्राष्ट्रीय उलझनोंसे डर कर उन्हें अनुमतिपत्र दे दिया गया।
(८) ऐसी भयानक स्थिति है, ट्रान्सवालमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंकी । वह रोज-रोज बदतर होती जा रही है और यदि सम्राटकी सरकार उनके संरक्षणके लिए राजी और तैयार नहीं होती तो अन्तिम परिणाम यही होगा कि धीरे-धीरे उनका लोप हो जायेगा।
यूरोपीय क्या करेंगे
(२) यदि यूरोपीय स्वतन्त्र छोड़ दिये जायें तो वे क्या करेंगे, यह नीचे के तथ्योंसे प्रकट हो जायेगा :
(क) एशियाई प्रश्नपर विचार करनेके लिए जो विशिष्ट राष्ट्रीय परिषद (नेशनल कन्वेन्शन) हुई थी उसने निम्नलिखित प्रस्ताव पास किये :