(ख) एक प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम बनाया गया जिसके द्वारा जो उपनिवेशके पूर्व-निवासी न रहे हों और जिन्हें किसी एक यूरोपीय भाषाका ज्ञान न हो ऐसे सभी व्यक्तियोंके नेटाल प्रवेशपर पाबन्दी लगाई गई।
(ग) एक व्यापारी परवाना अधिनियम बनाया गया जिसने नगर परिषदों और परवाना निकायोंको व्यापारी परवानोंपर अंकुश रखनेकी निरंकुश सत्ता दे डाली। उससे सर्वोच्च न्यायलयके अधिकार क्षेत्रका भी उच्छेद कर दिया गया है। प्रकट रूपमें वह यद्यपि सभी व्यापारियोंके लिए है फिर भी उसका अमल सिर्फ भारतीयोंके विरुद्ध किया जाता है। और उसके अन्तर्गत कोई भी भारतीय, फिर वह चाहे जितना जमा हुआ क्यों न हो, वर्षके अन्त तक अपने परवानेकी दृष्टिसे सुरक्षित नहीं है।
इन तमाम कानूनोंसे साम्राज्यीय सरकार ब्रिटिश भारतीयोंकी रक्षा करनेमें अपनेको असमर्थ पाती है।
ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें अनोखी स्थिति
(१४) भारतीयोंको संविधान के अन्तर्गत मताधिकार दिया जाये या नहीं, किन्तु निहित स्वार्थोकी रक्षा के लिए विशिष्ट धारा नितान्त आवश्यक है।
(१५) किसी भी उपनिवेशकी स्वराज्य प्राप्त होनेके समय ऐसी परिस्थिति नहीं थी जैसी ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर उपनिवेशकी है।
(१६) वे सब कारण जिनसे युद्ध हुआ था दूर नहीं हुए हैं। उनमें एक कारण ट्रान्सवालका भारतीय विरोधी कानून था।
(१७) ब्रिटिश सरकारका यह वचन कि भारतीय और रंगदार लोगोंके साथ दोनों उपनिवेशोंमें वैसा ही बरताव होना चाहिए जैसा केपमें होता है, अभीतक पूरा नहीं किया गया।
(१८) जब भारतीयोंकी निर्योग्यताएँ हटानेके विषयमें ब्रिटिश सरकार और स्थानिक सरकारोंके बीच वार्ताएं होने ही वाली थीं, उसी समय सम्राटकी सरकारके नये मंत्रियोंने दोनों उपनिवेशोंको उत्तरदायी शासन देनेका निश्चय कर लिया। इसलिए वार्ताएं स्थगित कर दी गई हैं, या बिलकुल छोड़ ही दी गई हैं।
(१९) केपमें परिस्थिति यह है कि भारतीयोंको यूरोपीयोंके बराबरीके अधिकार हैं; अर्थात् :
(क) जैसा मतदानका अधिकार यूरोपीयोंको है वैसा ही उन्हें है।
(ख) वे उसी प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम के अन्तर्गत हैं, जिसके अन्तर्गत यूरोपीय हैं।
(ग) उन्हें यूरोपीयोंके समान जमीन जायदाद रखने और व्यापार करनेका अधिकार है।
(घ) उन्हें एक स्थानसे दूसरे स्थानपर जाने-आनेकी पूरी स्वतन्त्रता है।
जोहानिसबर्ग, आज तारीख २९ मई, १९०६।
इंडियन ओपिनियन, २-६-१९०६