उपनिवेश-सचिवको भेजे गये श्री फॉक्सबोर्नके पत्रको उक्त पत्रसे विपरीत देखकर हमें प्रसन्नता हुई। हम इस महत्त्वपूर्ण पत्रकी ओर, जिसे हमने अपने सह्योगी 'इंडिया' से उद्धृत किया है, सभी दक्षिण आफ्रिकी साम्राज्य हितैषियोंका ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं। आदिवासी-रक्षक सभाके विरुद्ध दक्षिण आफ्रिकामें अक्सर बहुत-कुछ कहा गया है। परन्तु हमें आशा है कि दक्षिण आफ्रिकाके समाचारपत्र और उनके पाठक प्रत्येक बातका निर्णय उसके गुणावगुणके आधारपर करेंगे, और अपनी पहलेसे बनी द्वेष-भावनाके कारण आदिवासी-रक्षक सभाके कार्यकी निन्दा न करेंगे। आखिर, उसके सदस्योंमें कई उदात्ततम अंग्रेज भी तो हैं। इस मामले में श्री फॉक्सबोर्नको कई आश्वासन भी दिये गये थे जो अभी पूरे होने शेष हैं। उन्होंने उपनिवेश-सचिवको याद दिलाया है कि युद्धसे पहले उनके संघके प्रार्थनापत्रोंके उत्तरमें कुछ वादे किये गये थे। इस कारण, वे 'आशा करनेका साहस करते है कि उन वादोंको पूरा करने में बिलकुल विलम्ब न किया जायेगा। और लॉर्ड मिलनरके कथनसे उनकी " यह आशा बढ़ी है कि कमसे-कम उन रंगदार लोगोंके सम्बन्धमें तो ये वादे पूरे कर ही दिये जायेंगे, जो ब्रिटिश प्रजाजन हैं और असभ्य नहीं हैं।" साम्राज्य सरकारको एक पेचीदा सवाल हल करना है। या तो उसे सर आर्थर लालीकी' सलाह माननी पड़ेगी और साहसके साथ वादा खिलाफी करनी पड़ेगी, या ब्रिटिश परम्पराओंके अनुसार अपने वादे पूरे करने होंगे।
१०. चीनी और गन्दी भाषा
ट्रान्सवालको खानोंके गोरोंका एक शिष्टमण्डल लॉर्ड सेल्बोर्नसे १ जुलाईको मिला था। उसने उनसे मांग की कि चीनी मजदूरोंसे गोरोंकी रक्षा की जानी चाहिए। उसने उन्हें बताया कि गोरे चीनियोंसे खराब बर्ताव नहीं करते। एक गोरेके नियन्त्रणमें ३० या ४० चीनी काम करते हैं, इसलिए दंगके समय चोनियोंके लिए एक गोरेकी जान ले लेना कठिन नहीं है। चीनी बार-बार गन्दी भाषाके प्रयोगसे, इशारोंसे और मुंह बिचकाकर गोरे अधिकारीका अपमान करते हैं। वह भाषा इतनी गन्दी होती है कि शिष्टमण्डलके दुहराने योग्य नहीं है। शिष्टमण्डलके सदस्योंने बताया कि कोई भी गोरा ऐसा अपमान सहन करके चुप बैठा नहीं रह सकता। उत्तरमें लॉर्ड सेल्बोर्नने कहा कि ४०,००० चीनी मजदूरोंमें शारीरिक हमले करनेके मामले अबतक केवल २० हुए हैं। उनकी भाषा-सम्बन्धी शिकायत वजनदार नहीं है, क्योंकि खुद गोरे गन्दी भाषाका व्यवहार करके बुरा उदाहरण उपस्थित करते हैं। उनके सामने शराब पीना और अनुचित आचरण करना, खुद अपने लिए नुकसानदेह हो जाता है। ये भाषासे बिलकुल अनजान लोग अपने प्रति प्रयुक्त गन्दे शब्दोंको तोतोंकी तरह रट लेते हैं, और फिर उन्हें सुधारना बहुत कठिन हो जाता है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि गोरोंका गोरापन गोरी चमड़ीमें ही नहीं है, उन्हें अपने भीतर भी गोरा होना चाहिए; अर्थात् उनमें अपने अच्छे बर्तावसे सामनेके मनुष्यके मनमें आदर, आज्ञाकारिता और भय उत्पन्न करनेकी खूबी होनी चाहिए। तभी वे गोरे कहे जा सकते हैं। संक्षेपमें चीनियोंके खराब बर्तावके लिए उन्होंने गोरोंको ही जिम्मेवार माना और अच्छे बर्तावसे चीनियोंको वशमें करनेकी जरूरत बताई।
१. ट्रान्सवालमें भूतपूर्व उच्चायुक्त।