३६७. स्वर्गीय डॉक्टर सत्यनाथन
हमें मद्रासके प्रोफेसर सत्यनाथनकी मृत्युका समाचार दुःखके साथ प्रकाशित करना पड़ रहा है। भारत से हमारे पास परिवर्तन में आये हुए समाचारपत्र स्वर्गीय प्रोफेसर महोदय के कार्यको सराहनासे भरे पड़े हैं। डॉ° सत्यनाथन कर्तव्य पालन करते हुए तथा भरपूर जवानीमें परलोकवासी हुए। उनकी जीवनचर्या उज्ज्वल थी इसलिए उनका जीवन बड़ी-बड़ी सम्भावनाओंसे पूर्ण था।
दिवंगत महानुभाव मद्रास विश्वविद्यालयके एम° ए°, एलएल° बी° और बहुत शुद्ध अन्तः- करण से बने ईसाई थे। मस्तिष्क और हृदय दोनोंके उत्कृष्ट गुणोंके कारण सभी वर्गके लोग उनका सम्मान करते थे, और उनको सरकारका इतना गहरा विश्वास प्राप्त था कि वे लोकशिक्षा विभागके स्थानापन्न उपनिदेशक बना दिये गये। ऐसे भारतीयकी मृत्युसे भारतीय समाजका एक ऐसा पुरुष उठ गया है, जिसकी क्षति भारतीय समाज आसानीसे सहन नहीं कर सकता। हम दिवंगत महानुभावके परिवारके प्रति उसके शोकमें समवेदना प्रकट करते हैं। यह क्षति उस परिवारकी ही नहीं, वास्तवमें समस्त राष्ट्रकी है।
इंडियन ओपिनियन, २-६-१९०६
३६८. केपमें प्रवासी अधिनियम
हमारे केपके संवाददाताने जो समाचार भेजा है उससे अनुमान होता है कि थोड़े समयके लिए जानेवाले भारतीयोंको अब केपमें अड़चन नहीं होगी। थोड़े समयके लिए जानेकी जैसी सुविधा नेटालमें है वैसी अबतक केपमें नहीं दिखाई देती थी।
किन्तु दूसरी तरफ, हमारे संवाददाताके कथनानुसार प्रवासी कानूनमें जो परिवर्तन विधान सभाके इस सत्र में होनेवाला है उससे बहुत नुकसान होगा। हम पहले लिख चुके हैं कि नया कानून पास हो गया तो अधिवासका हक किसे प्राप्त है, यह तय करनेका अधिकार अदालतके बदले अधिकारीके हाथमें चला जायेगा। यदि ऐसा हुआ तो बात बहुत मुश्किल हो जायेगी। फिर अभी तो दक्षिण आफ्रिका निवासी केपमें प्रवेश कर सकते हैं। किन्तु नये कानूनके मुताबिक केपका वतनी ही केपमें प्रवेश कर सकेगा, जैसा नेटालमें होता है। इन दोनों परिवर्तनोंके विरुद्ध ब्रिटिश भारतीय समिति (लीग) को संघर्ष करना चाहिए। हम यह उम्मीद करते हैं कि समितिके सदस्य तुरन्त कार्रवाई करेंगे।
इंडियन ओपिनियन, २-६-१९०६