३६९. सर हेनरी कॉटन और भारतीय
'इंडिया' से हमने जो अंश उद्धृत किया है, उससे हमारे पाठकोंको पता चलेगा कि आसामके भूतपूर्व कमिश्नर सर हेनरी कॉटन हमारे लिए संसदमें खूब लड़ रहे हैं। इसके लिए हम उनका आभार मानते हैं। इस अवसरपर हमें यह बता देना चाहिए कि सर हेनरी कॉटनके पीछे काम करनेवाली [भारतीय राष्ट्रीय] कांग्रेसकी ब्रिटिश समिति है। उक्त समिति जो सवाल तैयार करती है, वही सर हैनरी कॉटन संसद में पेश करते हैं। और ब्रिटिश समितिके अगुआ हैं, सर विलियम वेडरबर्न तथा भारतके पितामह दादाभाई नौरोजी। मतलब यह कि, उक्त समितिके भी हम बहुत आभारी हैं।
इंडियन ओपिनियन, २-६-१९०६
३७०. नेटालका विद्रोह
'टाइम्स ऑफ नेटाल 'में एक पुराने उपनिवेशीने जो लिखा है उसका अनुवाद हमने दूसरी जगह दिया है। उसका भावार्थ यह है कि भारतीय लोग लड़ाईमें तो नहीं जा सकते, किन्तु जो लड़ाई में गये हैं, उन्हें जिन चीजोंकी आवश्यकता हो, वे चीजें देकर मदद कर सकते हैं। जिस तरह बोअर युद्धके समय एक कोष जारी किया गया था और भारतीयोंने उसमें मदद दी थी, उसी तरह इस समय भी करना चाहिए। इस समय कुछ चन्दा इकट्ठा करके सरकारको भेजा जाये अथवा जो कोष खुला हुआ हो उसमें चन्दा दिया जाये तो अच्छा होगा; और उतना फर्ज अदा हुआ, ऐसा समझा जायेगा। हम आशा करते हैं कि नेतागण इस प्रश्नको हाथ में ले लेंगे।
इंडियन ओपिनियन, २-६-१९०६
३७१. नया सानफ्रान्सिस्को
खुदा पलमें चाहे सो करे, यह कहावत हमारे हिन्दी पाठकोंके सामने पहली ही बार आ रही है, सो बात नहीं। एक घड़ीमें रावका रंक और रंकका राव बननेके उदाहरण इतिहास में बहुत मिलते हैं। यह तो एक व्यक्तिकी बात हुई। किन्तु राजा-रंकका यह नियम पूरे शहर अथवा देशपर भी लागू होता है। सानफ्रान्सिस्कोकी हालकी घटना इसकी साक्षी भरती है। तीन लाख, बल्कि उससे भी अधिक, व्यक्ति एक क्षणमें बे-घरबार हो गये! महल-मन्दिरोंमें सुख-चैनसे रहनेवाले हजारों लोगोंको, जिन्हें रात और दिनकी भी खबर नहीं होती थी, आज टूटी-फूटी झोंपड़ी भी नसीब नहीं है! अति विशाल सुन्दर हवेलियाँ और सुन्दर-सुन्दर मुहल्ले एक क्षणमें धराशायी हो गये और मिट्टीका ढेर बनकर कालको नमन कर रहे हैं। बाग-बगीचों और बंगलोंके स्थानपर वीरान मैदान छा गया है। असंख्य व्यक्ति पलभरमें बे-घरबार और खाने-पीनेके मोहताज हो गये हैं। ईश्वरकी इस अज्ञात गतिसे कौन विस्मित नहीं होगा? किन्तु इससे भी अधिक आश्चर्यचकित करनेवाली बात दूसरी ही है। ऐसी भयानक होनहारका आघात खानेपर भी हिम्मतके साथ कमर कसकर खड़ा रहना सच्ची बहादुरी है। ऐसा कठिन काम सानफ्रान्सिस्कोकी प्रजाने अपने सिर लिया है। उद्यम और लगनशीलताके लिए प्रख्यात अमरीकी जनता अपनी दृढ़ता प्रकट करने लगी है।