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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/३९८

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तबसे तीन मिसाली मामले ऐसे हुए हैं, जिनसे जाहिर हो जाता है कि शासनने कितनी सख्ती से काम लिया है।

(१) श्री हुंडामल,[] जो उपनिवेशमें कुछ समयसे व्यापार करते आ रहे हैं, अपनी दूकान बदल कर ग्रे स्ट्रीटसे वेस्ट स्ट्रीट ले जाना चाहते थे। स्वास्थ्य और सफाईकी दृष्टिसे दूकान हर एतराजसे बरी थी। उसका मालिक एक भारतीय था और दूकान ऐसी इमारतोंके समूहमें थी, जिनमें कई वर्षोंसे भारतीय व्यापारी ही रहे हैं। हुंडामल नफीस चीजोंके व्यापारी थे। वे पूर्वी देशोंके रेशम और दूसरी नफीस चीजोंका व्यापार करते थे। उनकी किसी यूरोपीयसे स्पर्धा नहीं थी। उनकी दुकान सावधानीके साथ साफ-सुथरी रखी जाती थी। फिर भी नगर-परिषदने एक स्थानसे दूसरे स्थानमें परिवर्तनकी इजाजत नहीं दी।

(२) श्री दादा उस्मान[] फाइहीडमें युद्धके कई वर्ष पहलेसे व्यापार कर रहे थे। जहाँ वे व्यापार करते थे उसे बोअर राज्यकालमें पृथक् बस्ती या 'बाजार' माना जाता था। फ्राइहीड जब नेटालमें शामिल कर लिया गया, तब परवाना-निकायने, जबतक वे शहरसे दूरकी एक दूसरी बस्ती में न चले जायें, नया परवाना देनेसे इनकार कर दिया। उस बस्तीमें कुछ भी व्यापार कर सकना उनके लिए बिलकुल असम्भव था। इसलिए फाइहीडका व्यापार श्री दादा उस्मानके हकमें बहुत नुकसानदेह साबित हुआ है। इस मामलेमें, और पहलेमें भी, प्रार्थियोंके प्रतिष्ठित होनेके सबूत में सम्माननीय यूरोपीयोंके अनेक प्रमाणपत्र पेश किये गये थे। स्मरण रखना चाहिए कि फाइहीडमें श्री दादा उस्मानकी दूकान ही एकमात्र भारतीय दूकान थी। परिस्थितिको और भी दुःखदायी बनानेवाली एक बात यह भी है कि नेटालके इस जिलेमें ट्रान्सवालके एशियाई विरोधी कानून जैसे-के-तैसे ले लिये गये हैं। इसलिए फ्राइहीडमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंको न केवल नेटालके कानूनसे लागू होनेवाली निर्योग्यताएँ भोगनी पड़ती हैं बल्कि साथ ही उनपर ट्रान्सवालके कानूनसे उत्पन्न निर्योग्यताएँ भी लद जाती हैं।

(३) श्री कासिम मुहम्मद लेडीस्मिथके निकट एक खेतीकी बस्ती में तीन वर्षोंसे व्यापार कर रहे हैं। कुछ दिनों तक वहाँ केवल उनकी ही दूकान थी। अभी-अभी बर्डेट ऐंड कम्पनी नामकी एक यूरोपीय पेढ़ीने भी पास ही एक दूकान खोल ली है। श्री कासिम मुहम्मदकी अनुपस्थितिमें उनके नौकरको फँसा कर उसपर रविवासरीय व्यापार अधिनियम तोड़नेका आरोप लगाया गया। नौकरने फँसानेवालोंको साबुनकी एक बट्टी और कुछ चीनी बेच दी थी। इस [सम्बन्धमें दी गई] सजाको हथियार बनाकर बर्डेट ऐंड कम्पनीने श्री कासिम मुहम्मदका परवाना फिरसे जारी किया जानेकी प्रार्थनाका विरोध किया। परवाना अधिकारीने उनकी आपत्तिको मान लिया और नया परवाना देनेसे इनकार कर दिया। निकायके सामने अपील की गई। उसने परवाना-अधिकारीके निर्णयको बहाल रखा। अदालतने कहा कि वह किसी पक्षपातसे प्रेरित नहीं है; श्री कासिम मुहम्मदके साथ वह वैसा ही बरताव करना चाहती है जैसा उसने किसी यूरोपीयके साथ किया था। यह गलत था। उस यूरोपीयको अपने पड़ोसकी खानमें काम करनेवाले भारतीयोंको कानून के खिलाफ अफीम बेचनेपर सजा दी गई थी; और उसके खिलाफ दूसरे आरोप भी लगाये गये थे। श्री कासिम मुहम्मदके नौकरके द्वारा रविवासरीय कानूनका प्राविधिक उल्लंघन करने और उक्त यूरोपीय द्वारा स्वयं अफीम कानून तोड़ने में अपार अन्तर है। श्री कासिम मुहम्मदने भी प्रतिष्ठित यूरोपीय पेढ़ियोंके उत्तम प्रमाण पेश किये थे।

 
  1. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ३८५-६।
  2. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १८।