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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/४२

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१५. पत्र:उपनिवेश-सचिवको

जोहानिसबर्ग

जुलाई १३, १९०५

सेवामें
माननीय उपनिवेश-सचिव
प्रिटोरिया
महोदय,

तारीख ७ के 'गवर्नमेंट गजट' के पूरक में प्रकाशित अध्यादेशके मसविदेकी उपधारा ३ का,जो उपनिवेशके कानूनोंको "नगरपालिकाकी विधि-संहिताको सामान्य रूपसे संशोधित करने" के विषयमें है, मुझे विनयपूर्वक अपने संघकी ओरसे विरोध करना पड़ रहा है।

यह देखते हुए कि एशियाई-विरोधी कानून स्थानीय सरकार और साम्राज्य सरकारके विचाराधीन है, मेरा संघ यह निवेदन करनेकी धृष्टता करता है कि नगरपालिकाओंको एशियाई "बाजारों के संचालनका अधिकार देना असामयिक है और वैसा करनेका मंशा उपनिवेशके ब्रिटिश भारतीयोंकी भी मान-प्रतिष्ठाको नुकसान पहुंचाना है। १८८५ के कानून ३ में सरकारी अंकुशका विधान है और यह देखते हुए कि ट्रान्सवालकी नगरपालिकाएँ बहुत हद तक रंग विद्वेषसे परि-चालित होती हैं, मेरा संघ नम्रतापूर्वक निवेदन करता है कि एशियाई बाजारों के संचालनका अधिकार नगरपालिकाओं या स्थानीय निकायोंको देना ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति अन्याय होगा।

इसलिए मेरा संघ आशा करता है कि सरकार उक्त धाराको वापस ले लेगी और जब-तक उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिके प्रश्नको कोई अन्तिम आधार नहीं दे दिया जाता,इस मामलेको रोक रखा जायेगा।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

अब्दुल गनी

अध्यक्ष,

ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९०५