१७. पत्र: हाइन व कारूथर्सको
[जोहानिसबर्ग]
जुलाई १३, १९०५
विषय : मृत अब्दुल करीमकी जायदाद
मुझे अफसोस है कि आपने जो प्रलेख अनुवादके लिए मेरे पास छोड़ दिया था, उसे मैंने अभी बहुत थोड़ा ही किया है। अब भी २४ घने लिखे हुए पन्ने अनुवादके लिए शेष हैं। मुझे कदाचित् यह कहनेकी जरूरत नहीं है कि यह अनुवाद बहुत ही महँगा पड़ेगा। जितना काम मैने किया है उसकी रकम २ पौंडसे अधिक हो गई है और समाप्त करते-करते वह लगभग १२ पौंड हो जायेगी। फिर भी मैने जो कुछ अबतक पढ़ लिया है, उससे जान पड़ता है कि पोरबन्दरमें मेरे प्रतिनिधिको प्रमाणित नकल पाने में बहुत चक्करका रास्ता अख्तियार करना पड़ा है। उसका कारण कानूनका परिवर्तन है, जिसके मुताबिक उन सम्बन्धित व्यक्तियोंके अति- रिक्त जो अदालतके अधिकारक्षेत्रमें आते हैं, कोई दूसरा व्यक्ति प्रमाणित नकलें नहीं पा सकता। बहरहाल, यदि आप मुझे अनुवादका काम जारी रखनेको कहें, तो मैं वैसा करूँगा। आपका पूरा अनुवाद देने में मुझे लगभग एक हफ्ता लग जायेगा। क्योंकि मेरी वर्तमान व्यस्तताओंके कारण मेरे लिए उसपर पूरे दो दिन लगाना सम्भव नहीं है, जो इस कामके लिए आवश्यक है। मै सिर्फ थोड़ा-सा समय रोज इस कार्यमें लगा सकता हूँ।
आपका विश्वासपात्र,
मो०क० गांधी
पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ६४९