१८. पत्र: उमर हाजी आमदको
[जोहानिसबर्ग]
जुलाई १३, १९०५
आपका पत्र मिला । अखबारकी कतरन वापस भेजता हूँ। इससे मालूम होता है कि'ओपिनियन' का प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
इसके साथ अंग्रेजीका पत्र वकीलको पढ़ानेके इरादेसे भेज रहा हूँ। वसीयतसे अनुसार अदालतकी तरफसे किसी ट्रस्टीकी नियुक्ति होनी चाहिए। बादमें जब कागज-पत्र यहाँ आयेगे तब जायदाद आप दोनोंके नाम होगी। फिर पट्टा दर्ज होगा। मैंने जो अंग्रेजीमें लिखा है वह आप समझ जायेंगे; इसलिए ज्यादा विस्तारसे नहीं समझाता।
मो० क० गांधीके सलाम
गांधीजीके स्वाक्षरों में गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ६५१
१९. पत्र: टाउन क्लार्कको
[जोहानिसबर्ग]
जुलाई १४, १९०५
विषय : भारतीयोंकी ट्रामगाड़ियोंमें यात्रा
इस विषयमें हमारी जो बातचीत हुई थी उसपर मैंने शान्ति और धीरजसे विचार किया है और अपने मुवक्किलसे सलाह-मशविरा कर लिया है। यदि इस बातका निश्चित आश्वासन दिया जा सके कि नई ट्रामगाड़ियों में भारतीयोंको यात्रा करनेकी सुविधाएँ दी जायेंगी, तो मेरा आसामी अदालतमें जाँच-मुकदमा दायर नहीं करेगा। किन्तु यदि ऐसा नहीं हो सके तो यह योग्य जान पड़ता है कि इस मामलेका निश्चित फैसला करा लिया जाये। मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह रहा है कि जहाँ कुछ अधिकारोंका अकारण अभाव मान लिया गया है, वहाँ ऐसी मान्यताके बलपर ही
१. मूल गुजराती में 'जोहरी' है।
२. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ५०३ ।