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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/४९

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२४. पत्र: छगनलाल गांधीको

२१-२४ कोर्ट चेम्बर्स

नुक्कड़, रिसिक व ऐंडर्सन स्ट्रीट्ज़

पो० ऑ० बॉक्स ६५२२

जोहानिसबर्ग

जुलाई १५, १९०५

चि० छगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला । तुम्हारे पास आज तक का हिसाब भेजा जा चुका है । उसपर से भूकम्प कोषमें जो रकमें मिली है तुम्हें उनकी जानकारी हो जायेगी । कुमारी न्यूफ्लीस द्वारा भेजी गई डर्बन बाढ़ कोषकी रकमें भी उसमें शामिल हैं। वे तुम श्री उमरको दे सकते हो। पत्रोंके लिए कोरे पुरौनी-कागज और कच्ची लिखाईके लिए गड्डियाँ मिल गई हैं। तुम्हारे निरीक्षण सम्बन्धी उल्लेखको मैं ठीक-ठीक नहीं समझा। तुम्हें चाहिए कि मुझे निश्चित उदाहरण भेजो। तब मैं कार्य-पद्धतिको अच्छी तरह समझ सकूँगा। मैं यह भी जानना चाहूँगा कि नुकसान कहाँ हुआ है या कहाँ होता आ रहा है। डाह्या जोगीका पैसा मिल गया है। वह रकम १ पौंड २ शि० ६ पे० है। मुझे मालूम है कि सामग्री देरसे भेजी गई थी। जितनी मुमकिन है, उतनी सामग्री आज भेज रहा हूँ। यदि कुछ बची तो वह कल भेज दी जायेगी। वेस्टने मुझे लिखा है कि मगनलालको सितम्बरके करीब रवाना होना और दिसम्बरमें लौटना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि तुम्हारी ऐसी राय है। यदि मगनलालके बिना काम चलाया जा सकता हो, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है। काबा और आनन्दलालका क्या हाल है ? क्या पिल्ले अब बिलकुल अच्छा हो गया है ? मगनलालको तमिल पुस्तकें मिल गई? उसने पढ़ाई शुरू कर दी है?

मोहनदासके आशीर्वाद

[पुनश्च]

वाई० एम० सी० ए०, जोहानिसबर्गको एक सालके लिए 'इं० ओ०' भेजो। पैसा श्री मैकिटायरसे मिल गया है।

मो० क० गां०

भूकम्प और कुमारी न्यूफ्लीसके हिसाबके परचे अलग-अलग बनेंगे।

श्री छगनलाल खुशालचंद गांधी
मार्फत, इन्टरनेशनल प्रिंटिग प्रेस
फीनिक्स

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४२४५) से

१.देखिए, खण्ड ४, पृष्ठ ४५८।

२. अलबर्ट वेस्टसे गांधीजीफी मुलाकात १९०४ में जोहानिसबर्गके एक उपाहार-गृहमें हुई थी। वे प्लेगके समय रोगियोंकी शुश्रूषाके लिए जोहानिसबर्गमें गांधीजीके पास आये थे। परन्तु उसके बजाय गांधीजीने इडियन ओपिनियन और उसके छापेखानेका प्रबन्ध उनके हाथों सौंप दिया। गांधीजी उनके विषयमें लिखते हैं : उस दिनसे लेकर मेरे दक्षिण आफ्रिका छोड़नेके दिन तक वे मेरे सुख-दुखके साथी रहे ।" देखिए, आत्मकथा भाग ४, अध्याय १६ ।

३. एक स्कोंट थियोसोफिस्ट जो गांधीजीके मुंशी थे। देखिए, आत्मकथा (गुजराती), भाग ४, अध्याय २१।