२५. पत्र: उमर हाजी आमद झवेरीको
[जोहानिसबर्ग]
जुलाई १७, १९०५
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आपका पत्र मिला। सेठ हाजी इस्माइलके' दोनों पत्र वापस भेजता हूँ। उनके लिखनेका ढंग मुझे जरा भी पसन्द नहीं आया। इससे अनुमान होता है कि उनके खर्चपर नियन्त्रण रखना मुश्किल होगा। यदि वहाँ किरायेके बराबर खर्च हो जाता हो तो इस सम्बन्धमें क्या करना उचित होगा, यह सोचनेकी बात है।
व्यापारमें पोरबन्दरका खर्च पूरा करने लायक मुनाफा न हो तो यह मूल पूँजीको खाना ही है। मुझे लगता है कि फिलहाल कलहमें वृद्धि रोकनेके लिए पोरबन्दरको १०० पौंडके हिसाबसे भेजना पड़ेगा। मैं आज सेठ हाजी इस्माइलको पत्र लिख रहा हूँ।
मो० क. गांधीके सलाम
गांवोजीके स्वाक्षरों में गुजरातीसे; पत्र-पुस्तिका (१९०५),संख्या ६७८
२६. पत्र : हाजी इस्माइल हाजी अबूबकरको
[जोहानिसबर्ग]
जुलाई १७, १९०५
उमर सेठका पत्र आया है। वे उसमें लिखते हैं कि यह खर्च ज्यादा है। आपके पिछले दो पत्र भी मैंने पढ़े। मुझे लगता है कि आपने जो पत्र लिखे हैं वे जितने चाहिए उतने शिष्टतापूर्ण नहीं हैं। उमर सेठ आपके काका है। इसलिए आपकी तरफसे उनको लिखा पत्र आपके खानदानी गौरवके अनुकूल शिष्टतापूर्ण होना चाहिए।
खर्च के बारेमें जो उमर सेठ कहते हैं वह विचारणीय है। जब उमर सेठ विलायत गये तबमें और आजके समयमें बड़ा अन्तर है। इस समय किराये आधे हो चुके हैं और अभी घटेंगे। यहाँका खर्च किरायेकी आयमें से पूरा होता है। इसलिए मूल पूंजीपर गुजारा करनेका वक्त आ गया है। मुझे लगता है कि आपकी जायदाद ऐसी है कि मूल पूंजीपर गुजारा करनेकी बात नहीं उठनी चाहिए। जिन्होंने पूंजीपर गुजारा किया है ऐसे करोड़पतियोंका पैसा भी खत्म हो गया है। इसलिए आपको मेरी खास सलाह है कि अपने घरका खर्च विचार कर करें। मुझे
१. उमर हाजी आमदके भतीजे।
२. देखिए अगला शीर्षक।