२८. पत्र: रेवाशंकर झवेरीको
[जोहानिसबर्ग]
जुलाई १८, १९०५
आपका पत्र मिला । आप मेरे खाते में ४५ रु० नामे लिखकर कैप्टन मैकग्रेगरके जमा कर लें। उतना मैंने उनके खाते नामे लिखकर आपका जमा कर लिया है।
चि० हरिलालको यहीं भेजने में कुशल दिखाई देती है। वहाँका खर्च जैसे बने वैसे कम करना बहुत जरूरी है। यहाँ मेरे ऊपर बोझा इतना है कि वहाँका खर्च उठाना मुश्किल है। उससे हरिलालका हित सधता हो, मुझे ऐसा भी नहीं दिखाई देता। रलियात बहनको लिखें कि उन्हें अपना खर्च २० रु० से २५ रु० तक में चलाना चाहिए। मैंने भी उन्हें खर्च कम करनेके लिए लिखा है।
चि० मणिलाल और सूरजकी खबर पढ़कर सन्तोष हुआ है।
मोहनदासके प्रणाम
गांधीजीके स्वाक्षरों में गुजरातोसे;पत्र-पुस्तिका (१९०५),संख्या ६९६
२९. पत्र: रविशंकर भट्टको
[जोहानिसबर्ग]
जुलाई २१, १९०५
आपका पत्र मिला। मेरे विचारसे कोई भी भारतीय विद्वान आये हम सब उसका सम्मान करनेके लिए बाध्य हैं। उनके धर्मोपदेशसे हमारा सम्बन्ध नहीं है। उसका सम्मान करने में हिन्दू और मुसलमान दोनोंको शामिल होना चाहिए । इसलिए मैं समझता हूँ कि प्रोफेसर परमानन्दका
१. डॉ० प्राणजीवन मेहताके सगे भाई। इनके जीवन-कालमें गांधीजी बम्बई जानेपर इनके ही घर में ठहरते थे।
२. गांधीजीकी बड़ी बहन।
३. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।
४. रेवाशंकरके पुत्र ।
५. आर्यसमाजके प्रमुख नेता, जो पीछे भाई परमानन्दके नामसे अधिक प्रसिद्ध हुए । वे दक्षिण आफ्रिका भी गये थे, जहाँ उन्होंने कुछ भाषण दिये थे। देखिए “प्रो० परमानन्द", पृष्ठ ५१ "प्रो० परमानन्दको मानपत्र", पृष्ठ ११३