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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/५७

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३३.ट्रान्सवालमें एशियाई 'बाजार'

ट्रान्सवालके 'गवर्नमेंट गज़ट 'के हालके अंकमें एक अध्यादेशका मसविदा प्रकाशित किया गया है। उसकी कुछ धाराएँ ये हैं:

(१) परिषद लेफ्टिनेंट गवर्नरकी मंजूरीसे, केवल एशियाई लोगोंके लिए, बाजारों या अन्य स्थानोंको अलग कर सकती है, कायम रख सकती है और चला सकती है। लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा समय-समयपर बनाये गये नियमों के अनुसार, उनका नियन्त्रण और निरीक्षण कर सकती है। और उनकी जमीनों या उनपर बनी इमारतों या अन्य निर्मित चीजोंको, उन शर्तोंपर एशियाइयोंको पट्टपर दे सकती है जो समय-समयपर ऊपर कहे नियमोंके अनुसार तय की जायें।

(२) लेफ्टिनेंट गवर्नर १८८५ के कानून ३ या उसके किसी संशोधनको धाराओंमें निर्दिष्ट किसी भी बाजारकी जगहों या अन्य स्थानोंको, नगरपालिकाकी किसी भी परि- षदके नाम हस्तान्तरित कर सकता है। परन्तु ऐसा करते हुए उसके वर्तमान पट्टोंका खयाल रखा जायेगा; और ऐसे किसी भी हस्तान्तरणपर हस्तान्तरणके स्टाम्पका कर या रजिस्ट्रीका खर्च या कोई अन्य खर्च नहीं लगेगा; और इस प्रकार हस्तान्तरित किया गया कोई भी बाजार या स्थान, इस खण्डके उपखण्ड (१) के अन्तर्गत पृथककृत बाजार या क्षेत्र माना जायेगा।

(३) इस अध्यादेशके खण्ड २ के नियमोंके अनुसार आवश्यक परिवर्तनोंके साथ, किसी परिषदको अधिकार है कि वह चाहे तो ऐसे बाजारों और स्थानोंको बन्द कर दे और इनके लिए दूसरी उपयुक्त जमीनका बन्दोबस्त करे।

(४) इस खण्डका "परिषद" शब्द किसी भी नगरपालिकाकी परिषदका सूचक होगा, फिर वह नगरपालिका चाहे १९०३ के नगर-निगम अध्यादेशके अन्तर्गत बनी हो, चाहे १९०४ के संशोधित नगर-निगम अध्यादेश या किसी अन्य विशेष कानूनके अन्तर्गत।

जोहानिसबर्गके ब्रिटिश भारतीय संघने, 'बाजारों'का नियन्त्रण नगरपालिकाओंको हस्ता- न्तरित कर देनेके विचारका अविलम्ब प्रतिवाद किया है। हमारी सम्मतिमें, ऐसे हस्तान्तरणके विरोध में की गई आपत्तियां अकाटय है। सारा ही एशियाई प्रश्न अभी विचाराधीन है, और उसके सम्बन्धमें साम्राज्य सरकार और स्थानीय सरकारके बीच पत्र-व्यवहार हो रहा है। १८८५ का कानून ३, जैसा दोनों पक्षोंने कहा है, अस्थायी है और यथाशीघ्र हटा दिया जायेगा। इसलिए कोई भी ऐसा विधान, जिसका आधार यह कानून हो और जिससे पाबन्दियां बढ़ती हों, उस उदार नीतिके अनुरूप नहीं हो सकता जिसका पालन करनेके लिए स्थानीय सरकारें बाध्य है। यदि यह बात नहीं है तो श्री लिटिलटनके इस वक्तव्यका क्या अर्थ होगा कि कमसे-कम युद्धसे पहलेको अवस्थाएँ जैसीकी तैसी रहने दी जायेंगी। इसके अतिरिक्त रंगके प्रश्नपर ट्रान्सवालकी नगरपालिकाओं और स्थानिक निकायोंके पूर्वग्रह बड़े प्रबल हैं। वे इसका ढोल पीटनेमें संकोच

१. देखिए “ पत्र: उपनिवेश-सचिवको", पृष्ठ १२ ।