३९. पत्र : बीमा कम्पनीके एजेंटको'
[जोहानिसबर्ग]
जुलाई २५, १९०५
आपको याद होगा कि श्री आनन्दलाल अमृतलाल गांधी और श्री अभयचन्द अमृतलाल गांधीका' मेरी मार्फत बीमा हुआ था। उनकी पालिसियोंका नं० क्रमशः ३३६९००९ और ३३६९००४ है। मुझे मालूम हुआ है कि कुछ दिनोंसे इन पालिसियोंकी किश्तें नहीं दी गई हैं। क्या आप कृपया मुझे यह बता सकेंगे कि इन बीमा पालिसियोंको फिरसे जारी करना सम्भव है या नहीं? और यदि सम्भव है तो किन शर्तोंपर? यदि बीमा करानेवाला सज्जन उन्हें फिरसे जारी न कराना चाहे तो जो किश्तें वे दे चुके हैं, उनमें से उन्हें कुछ रकम वापस मिल सकती है या नहीं?
आपका विश्वस्त,
मो० क०गांधी
पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ७७१
४०. क्रूगर्सडॉर्पमें भारतीय
गर्सडॉर्पकी नगर परिषदने सरकारको अर्जी भेजी है कि भारतीयोंको अनिवार्य रूपसे बस्तियोंमें भेजनेका कानून बनाया जाना चाहिए । ट्रान्सवाल सरकारने उत्तर दिया है कि, फिलहाल कुछ नहीं किया जा सकता, क्योंकि ब्रिटिश सरकारके साथ इस सम्बन्धमें पत्र-व्यवहार हो रहा है। इससे मालूम होता है कि श्री लिटिलटन और सर आर्थर लालीके बीच विवाद अभी चल ही रहा है। सर आर्थरकी यह मांग है कि केवल भारतीयोंपर ही लागू होनेवाले कानून बनाये जाने चाहिए। परिणामका पता आगामी वर्षसे पहले लगनेकी सम्भावना नहीं है। इस बीच हम उम्मीद करते हैं कि कूगर्सडॉर्पके भारतीय अपने मकान साफ-सुथरे रखेंगे।
गांधीजीने अगस्त ८,१९०५ को इसी तरहका एक पत्र बम्बई के एजेंटको लिखा था । सम्भवत: वह कम्पनीके जोहानिसबर्ग-कार्यालयकी सूचनापर लिखा गया होगा।
२-३. गांधीजीके चचेरे भाई अमृतलाल गांधीके पुत्र और तुलसीदास गांधीके पौत्र ।