६१. पत्र: मुख्य अनुमतिपत्र-सचिवको
[जोहानिसवर्ग]
अगस्त १५,१९५०
मैं पत्रवाहक जॉन सौकलको उसके अनुमतिपत्र तथा पंजीयनके लिए भेज रहा हूँ। मेरी नम्र सम्मतिमें उसके पास जो [गज-पत्र है उनसे यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि वह ३१ मई १९०२ को उपनिवेशमें था और तबसे यहीं है। वह अपने नामके पंजीयनके सिलसिलेमें जो तफसील देता है उससे यह जाहिर होता है कि उसका पंजीयन बोअर सरकारके जमाने में हुआ होगा। मेरा खयाल भी ऐसा ही है। उसके दर्जेका आदमी किसी हालतमें पंजीकरणसे नहीं बच सकता, विशेषतः जब वह इतने लम्बे अरसेसे देशमें रहता हो और पत्रवाहक निःसन्देह यहाँ लम्बे अरसेसे रहता जान पड़ता है। उसने मुझसे कहा है कि इस समय उसकी पहचानके ऐसे कोई लोग जोहानिसबर्गमें नहीं है जो इस बातको प्रमाणित कर सकें कि उसने बोअर सरकारके जमानेमें अपना नाम दर्ज कराया था। आदमी मुझे बहुत गरीब लगता था। इसलिए मुझे विश्वास है कि अगरचे वह पहले ३ पौंड जमा करने के सम्बन्धमें हलफिया बयान पेश करनेकी स्थितिमें नहीं है, आप उसे अनुमतिपत्र दे देंगे और उसका नाम भी नये सिरेसे दर्ज करवा । मुझे मामला बिलकुल सच्चा और सहानुभूतिके योग्य जान पड़ता है।
आपका आज्ञाकारी सेवक,
मो० क० गांधी
पत्र-पुस्तिका (१९०५), संख्या ९७१
६२. पत्र: अब्दुल रहमानको
[जोहानिसबर्ग]
अगस्त १६,१९०५
कल्याणदासको 'इंडियन ओपिनियन' के चन्देके सम्बन्धमें आपने जो मदद दी, उसके लिए आपको बहुत धन्यवाद । आपने मुझसे पाँचेफस्ट्रममें रखे मालके बीमेका जिक्र किया था। एक
१. कल्याणदास जगमोहनदास मेहता १९०३ में गांधीजीके साथ दक्षिण आफ्रिका गये थे और वहाँ वे उनके साथ ५ वर्ष रहे । उन्होंने १९०४ में जोहानिसबर्गके प्लेगके समय बहुत काम किया था।