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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/८०

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६४. सर मंचरजी और श्री लिटिलटन

ट्रान्सवालमें भारतीयोंपर पड़नेवाली मुसीबतोंके सम्बन्धमें गत वर्ष विधान परिषदमें यह प्रस्ताव किया गया था कि श्री लिटिलटन आयोगकी नियुक्ति करें। सर मंचरजीने लिखा था कि वे इस आयोगको नियुक्तिके सम्बन्ध में अपनी सम्मति दे रहे हैं। उन्होंने इस बारे में फिर जो प्रश्न किया है उसके उत्तरमें श्री लिटिलटनने कहा है कि अभी इस सम्बन्ध में परामर्श हो रहा है। इससे पता चलता है कि श्री लिटिलटनके साथ ट्रान्सवालकी सरकार झगड़ती रहती है और दोनों एकमत नहीं हैं। श्री लिटिलटनकी मांग यह है कि नेटाल उपनिवेशके लिए प्रवासी अधिनियमके समान कानून बनाये जायें, और सर आर्थर लाली चाहते हैं कि केवल भारतीयोंपर ही लागू होनेवाले कानून बनाये जायें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-८-१९०५

६५. एलिजाबेथ फ्राई'

अंग्रेज लोग हमपर शासन करते हैं और हमारी हालत खराब है, इसके कई कारण है। इनमें से एक कारण यह है कि इस जमाने में अंग्रेजोंमें, हमारी अपेक्षा बहादुर, धार्मिक और पवित्र स्त्री-पुरुष अधिक हुए मालूम पड़ते हैं। कुछ भी हो, पवित्र स्त्री-पुरुषोंके जीवन वृत्तान्त जाननेसे और उनपर सतत मनन-चिन्तन करनेसे हमें लाभ होगा ही, ऐसा समझकर समय-समयपर हम इस प्रकारके जीवन-वृत्तान्त देते रहेंगे। हमें आशा है कि इस अखबारके पाठक इन्हें पढ़कर और वैसा ही आचरण करके हमको प्रोत्साहित करेंगे। हम पहले लिख चुके हैं कि 'इंडियन ओपिनियन 'की फाइल प्रत्येक ग्राहक रखे। हम इस अवसरपर उस बातकी याद पुनः दिलाते हैं।

इंग्लैंडमें एक शताब्दी पहले श्रीमती एलिजाबेथ फ्राइ हो गई हैं। वे अत्यन्त धार्मिक महिला थीं और उनका ध्यान मानव-जातिके दुःख दूर करनेकी ओर रहता था। वे खुद हमेशा बीमार रहा करती थीं; किन्तु इस बातकी उन्होंने परवाह नहीं की। अपने ऊपर कष्टोंके आनेसे वे हारती न थीं। इंग्लैंडमें न्यूगेट नामका एक कारागृह है। उसमें सौ वर्ष पहले कैदी स्त्री-पुरुष बुरे ढंगसे रखे जाते थे। उनकी सार-सँभाल कोई नहीं करता था। उनकी दशा बहुत खराब थी। उनमें अपराध घटनेके बदले बढ़ते थे। उनका जीवन बहुत-कुछ जानवरों-जैसा था। नतीजा यह होता था कि जो लोग न्यूगेटमें कैद काटकर बाहर आते थे उनकी दशा दयनीय हो जाती थी। यह कष्ट साधु-प्रकृति एलिजाबेथ फाइसे देखा नहीं गया। उनका जी संतप्त हो उठा और उन्होंने अपना जीवन इस प्रकारके कैदियोंकी हीन दशा सुधारनेमें अपित कर दिया। वे अधिकारियोंकी स्वीकृति प्राप्त करके, मुख्यत: स्त्री कैदियोंकी सहायता करने लगीं। वे उनको सुव-सुविधाएँ दिलातीं। इतना ही नहीं, उन्होंने लेख लिखकर तथा अपने परिश्रमसे

१. एलिजाबेथ फ्राइ, १७८०-१८४५, सोसाइटी ऑफ फ्रैंडसफी सदस्या थीं। वे जेल-सुधारकी अग्रणी थीं।