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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/८६

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७०. रूसका नया संविधान

रूसके जारने अपनी प्रजाको चुनावपर आधारित संविधान कायम करनेका जो वचन दिया था, वह अमल में लाया गया है। उसकी धाराओंके बारे में जो तार दक्षिण आफ्रिका आये हैं, उनसे पता चलता है कि इस समयके प्रजातन्त्रीय राज्य-विधानोंसे वह बहुत कम मेल खाता है। और वह भी भविष्यमें सही रूपसे अमलमें लाया जायेगा या नहीं, यह बहुत सन्देहपूर्ण मालूम देता है। इस विधानमें कानून बनानेकी सत्ता ऊपरी दृष्टिसे तो चुने हुए मण्डलको दी गई है। किन्तु उन सारी धाराओंके बावजूद ज़ारने अपनी राज्यसत्ता कायम रखी है। इसलिए यह विधान अजीब-सा दीखता है। चुनी हुई राष्ट्रीय परिषद जिन कानूनोंको स्वीकृत करेगी उनके लिए जारकी सम्मति प्राप्त करना आवश्यक होगा। राजसत्तापर यह परिषद किसी भी प्रकारका नियंत्रण रख सकेगी, ऐसा मालूम नहीं होता। फिर भी आगे चलकर अधिक जोर लगानेके लिए इस प्रकारका विधान सीढ़ीका काम देगा, इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-८-१९०५

७१. अब्राहम लिंकन

पिछले सप्ताह हमने एलिजावेथ फ्राइका वृत्तान्त दिया था। इस बार अमेरिकाके एक भूतपूर्व राष्ट्रपतिका वृत्तान्त दे रहे हैं।

ऐसा माना जाता है कि गत शताब्दीमें जो बड़ेसे-बड़ा और भलेसे-भला मनुष्य हुआ, वह था अब्राहम लिंकन । अब्राहम लिंकनका जन्म सन् १८०९ में अमेरिकामें हुआ था। उस समय उसके माँ-बाप बहुत गरीबीकी हालतमें थे। १५ वर्षकी आयु तक उसे बहुत ही थोड़ा शिक्षण मिल पाया था। उसे शायद ही लिखना आता था और वह जगह-जगह चक्कर काटकर गुजारेके लायक थोड़ा-बहुत कमा लेता था।

अन्तमें उसके मनमें आगे बढ़नेका विचार पैदा हुआ। उन दिनों स्टीमरकी या अन्य किसी प्रकारकी सुविधाएँ न थीं। इसलिए वह लकड़ीके तख्तोंपर अमेरिकाकी विशाल नदियोंमें प्रवास करता हुआ कितने ही गांवोंमें गया। एक जगह उसे मुंशीगीरीका काम मिल गया। इस समय उसकी आयु बीस वर्षकी थी। जब उसे यह नौकरी मिली तब उसके मनमें यह समाया कि कुछ अधिक अध्ययन करना चाहिए। इसपर उसने कुछ किताबें खरीद लीं और अपने ही श्रमसे अध्ययन प्रारंभ किया। इस बीच उसके एक रिश्तेदारके मनमें यह विचार आया कि यदि अब्राहम लिंकन कानूनका अध्ययन कर ले तो और उन्नति कर सकेगा। इस खयालसे उसने अब्राहम लिकनको एक वकील के यहाँ रखा दिया। वहाँ उसने बड़ी लगन और श्रमके साथ काम किया तथा अध्ययन भी किया। उसने अपनी चतुराईका इतना अच्छा परिचय दिया कि उसके अधिकारी बड़े प्रसन्न हुए। स्वयं उसको भी यह लगा कि मेरी स्थिति उस समाजकी सेवा करने योग्य है, जिसमें मैंने जन्म पाया है।