देना सिद्धान्तः अनुचित और अन्यायपूर्ण है। अतः, मुझे आपसे इस मामलेमें राहतकी प्रार्थना करनेका निर्देश दिया गया है।
आपका आज्ञाकारी सेवक,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ
७३. पत्र: मुख्य अनुमतिपत्र सचिवको
ब्रिटिश भारतीय संघ
पो० ऑ० बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
सितम्बर १,१९०५
मेरे संवको सूचना मिली है कि अनुमतिपत्र कार्यालयमें एक नया नियम लागू किया गया है। उसके अनुसार ब्रिटिश भारतीय शरणार्थियोंके लिए आवश्यक हो गया है कि वे बजाय दो ज्ञात सन्दर्भ देनेके, जैसा कि अबतक देते रहे हैं, दो यूरोपीय सन्दर्भ दें। मेरे संघका नम्र निवेदन है कि यह प्रस्तावित नियम पहले तो ब्रिटिश भारतीय समाजके लिए एक अपमान है; क्योंकि इससे भारतीय साक्षीपर विश्वासकी कमी ध्वनित होती है, और दूसरे यह अव्याव- हारिक भी है; क्योंकि बिरले ही भारतीय ऐसे हैं जिनको यूरोपीय लोग नामसे जानते हैं। दूकानदार, उनके सहायक, विक्री कर्मचारी और ब्रिटिश भारतीयोंके घरेलू नौकर यूरोपीयोंके सम्पर्क में कदाचित् ही आते हैं। उनसे यह आशा करना कि वे यूरोपीय सन्दर्भ प्रस्तुत करें अनु- मतिपत्रके लिए उनके प्रार्थनापत्रको अस्वीकार करनेके बराबर है। तीसरे, यह घूसखोरीको बढ़ावा देगा; क्योंकि यह सर्वथा संभव है कि थोड़ेसे नीतिभ्रष्ट भारतीयोंके लिए थोड़े-से वैसे ही यूरोपीयोंको खोज लेना कठिन न होगा। ऐसे यूरोपीय किसी भी लाभके खयालसे झूठी कसम खानेको तैयार हो जायेंगे।
इसलिए मेरा संघ नम्र निवेदन करता है कि सुरक्षाका एकमात्र उपाय इसी बातमें है कि सन्दर्भ सम्माननीय हों और इस बारे में उनकी जाति या रंगका विचार न किया जाये। तब भी बहुत सम्भव है, घूसखोरीके कुछ मामले हों। परन्तु वे विशुद्ध रूपसे ऐसे मामले होंगे जिनमें ऐसा करनेवालोंके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकेगी। एक या दो सफल मुकदमोंके बाद ऐसी घटनाओंका निश्चय ही अन्त हो जायेगा। इसके साथ ही मेरा संघ आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचता है कि अनुमतिपत्रोंके सम्बन्ध में व्यापक प्रलोभनोंके होते हुए भी ऐसी,