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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/९२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

३. किसीको युद्ध में भाग नहीं लेना चाहिए।

४.राज्य-सत्ताका उपभोग करना पाप है। इससे दुनियामें अनेक दुःख उत्पन्न होते हैं।

५. मनुष्य अपने कर्ताके प्रति अपने कर्तव्यका पालन करनेके लिए पैदा हुआ है, इसलिए अपने स्वत्वोंकी अपेक्षा उसे अपने कर्तव्यपालनपर अधिक ध्यान देना चाहिए।

६. मनुष्यके लिए सच्चा रोजगार खेती है और बड़े नगरोंको बसाना, उनमें लाखों मनुष्योंको यन्त्रोद्योग आदिमें लगाना और इस प्रकारके लगे हुए मनुष्योंकी गुलामी अथवा गरीबीसे लाभ उठाकर थोड़ेसे मनुष्यों द्वारा अमीरीका उपभोग किया जाना ईश्वरीय नियमके विपरीत है।

उपर्युक्त विचार बहुत प्रतिभाशाली ढंगसे विभिन्न धर्मोंसे प्रमाण ढूंढ-ढूंढकर और पुराने ग्रन्थोंके आधारपर सिद्ध किये हैं। इस समय यूरोपमें टॉलस्टॉयके सुझाये नियमोंके अनुसार चलनेवाले हजारों मनुष्य बसते है। इन मनुष्योंने अपना सर्वस्व त्यागकर बहुत सादी जिन्दगी अपनाई है।

टॉलस्टॉय अबतक जोशीले लेख लिखा करते हैं। स्वयं रूसी होनेपर भी रूस और जापानकी लड़ाईके सम्बन्धमें उन्होंने रूसके विरुद्ध बड़े तीखे और कड़े लेख लिखे हैं। रूसके सम्राटको टॉलस्टॉयने युद्धके सम्बन्धमें बड़ा प्रभावशाली और तीखा पत्र लिखा है। स्वार्थी अधिकारी टॉलस्टॉयपर बहुत कटु दृष्टि रखते हैं, फिर भी वे और स्वयं ज़ार भी उनसे डर कर चलते हैं, और मान देते हैं। लाखों गरीब किसान उनके कहे हुए वचनोंका पालन करते हैं, यह उनको भलमनसाहत और ईश्वरपरायण जीवनका प्रताप है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-९-१९०५

७६. जापानकी उन्नति

संसारमें आज सबकी नजर जापानकी ओर लगी हुई है। कोई भी उस देशकी बहादुरी और चतुराईकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहता। जापानके एक भूतपूर्व प्रधानमन्त्री काउंट ओकूमाने 'नॉर्थ अमेरिकन रिव्यू में एक लेख लिखा है। उसमें बताया गया है कि इस समयके जापानकी महानता शताब्दियोंसे होते आनेवाले सुधारोंका परिणाम है। केवल शिक्षण-पद्धतिके दोषके कारण ही वह संसारको नजरमें पिछड़ा हुआ था। जापानने समझ लिया कि विदेशियोंको अपने देशसे दूर रखना उसके वशमें नहीं है, और इसलिए उसने विचार किया कि अपनी सन्तानोंको विदेश भेजकर उन्हें वहाँकी विद्या और कला सिखाई जाये। इस काममें उसने जो स्वदेशाभिमान दिखाया उसके कारण उसकी अपनी प्रतिष्ठा कायम रही। जापानने उत्तम विदेशी शिक्षण- प्रणाली अपने देशमें जारी की। बालकों और बालिकाओंके लिए शिक्षण अनिवार्य कर दिया। साथ ही कला-कौशल और उद्योगपर भी ध्यान देने में वह नहीं चूका। जबतक उसके युवक पूरी तरह प्रशिक्षित होकर घर नहीं लौटे तबतक उसने विदेशी विद्वानोंको कामपर लगाये रखा।

जब पाठशालाओंकी योजना काफी जोरसे चल पड़ी तब मिकाडोने प्रत्येक स्कूलमें पढ़ानेके लिए एक आदेश प्रकाशित किया कि "तुम, हमारी प्रजा और अपने माता-पिताके प्रति भक्ति रखना; अपने भाई-बहनके प्रति स्नेहशील बनना; पति-पत्नी मेलसे रहना; अपना बरताव सरल