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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/९३

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पत्रः शिक्षा-मन्त्रीको

रखना; परमार्थ वृत्ति बढ़ाते जाना; अपने बुद्धिबल और सद्गुणोंका विकास करना; परोपकारके कामोंसे देशकी कीर्ति बढ़ाना; राज्यके संविधानका अनुसरण करके कानूनोंका आदर करना; और अवसर आनेपर लोकसेवाके लिए मैदानमें आकर बहादुरी दिखाना।" न्यूयॉर्कमें भाषण करते हुए बैरेन कैनेकोने बताया था कि जापानकी प्रतिष्ठाकी बुनियाद यही है।

सैनिकों और नाविकोंके बीच भी नीचे लिखी सात सीखें प्रचारित की गई थीं:

१. खरे और वफादार बनो और असत्यसे दूर रहो।

२. अपने वरिष्ठ अधिकारीका आदर करो, साथियोंके प्रति सच्चे रहो, उद्दण्डता और अन्यायसे दूर रहो।

३. अपने अधिकारीकी आज्ञाके अधीन रहो और उसके आदेशोंके प्राप्त होनेपर आना-कानी मत करो।

४. साहस और बहादुरीको ग्रहण करो और नामर्दी तथा भीरुताको त्याग दो।

५. क्रूर साहसकी प्रशंसा मत करो तथा दूसरोंका अपमान और दूसरोंसे कलह मत करो।

६. सद्गुण तथा मितव्ययिताको अपनाओं और फिजूलखर्चीसे दूर रहो।

७. अपने गौरवकी रक्षा करो और जंगलीपन तथा कंजूसीसे अपनेको बचाये रखो।

जापानके सम्राटके इस प्रकारके आदेशोंने प्रजा, सैन्य और सत्ताधिकारियोंमें सद्गुणोंका प्रसार करके उन सबको एक बनाया है और आज संसारको उसका जो बड़प्पन दिखाई देता है वह उपर्युक्त आदेशोंका ही परिणाम है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-९-१९०५

७७. पत्र: शिक्षा-मन्त्रीको

डर्बन

सितम्बर ५, १९०५

सेवामें
माननीय शिक्षा-मन्त्री
महोदय,

हम, उच्चतर श्रेणी (हायर ग्रेड) भारतीय विद्यालयमें अध्ययन करनेवाले भारतीय बच्चोंके माता-पिता या अभिभावक, राहत पानेके लिए सादर निम्न लिखित निवेदन करते हैं।

हमें ज्ञात हुआ है कि सरकारका इरादा डर्बनके उच्चतर श्रेणी भारतीय विद्यालयको साधारणतया रंगदार बच्चोंके स्कूलमें बदल देने और बालकों और बालिकाओंमें कोई भेद न रखनेका है।

हम सविनय निवेदन करते हैं कि इस स्कूलको समस्त रंगदार बच्चोंके लिए खोल देना भारतीय समाजके प्रति अन्याय और तत्कालीन शिक्षा-मन्त्री और सर अल्बर्ट हाइम व श्री रॉबर्ट रसेल द्वारा दिये गये इस आश्वासनकी अवहेलना है कि यह विद्यालय केवल भारतीय

१. देखिए, खण्ड ३, पृष्ठ १८२ और २१२ ।