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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/११०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री पिल्लेने भी जोशीला भाषण दिया।

श्री गुलाब रुद्र देसाई, श्री खुशाल छीता, श्री गुलाम मुहम्मद और श्री मूसा सुलेमानने कहा कि यदि कोई आदमी अनुमतिपत्र कार्यालयमें जायेगा तो वे उसे समझाकर रोकेंगे।

श्री हाजी कासिमने कहा कि कानून भारतीय समाजको स्वीकार हो ही नहीं सकता।

मौलवी साहब अहमद मुख्त्यारने कहा कि धर्म-गुरुओंका काम केवल नमाज पढ़ाना ही नहीं, लोगोंके दुःखमें पूरी तरह हाथ बँटाना भी है। गोरे लोग हमारे धर्मका अपमान करना चाहते है, इसलिए वे रेल किरायमें भेद करते हैं। रेलवेवालोंने कहा है कि ईसाई और यहूदी पादरी आधे किरायेपर रेलमें यात्रा कर सकते हैं, किन्तु हिन्दू और मुसलमान धर्म-गुरु नहीं कर सकते। भारतीय समाज इस प्रकारकी गुलामी कभी स्वीकार नहीं करेगा।

श्री ईसप मियाँने अन्तिम भाषण देते हुए श्री गुलाब रुद्र देसाईको उनकी हिम्मतके लिए अपनी शाल दी और कहा कि मैं अपना निजी काम छोड़कर लोकसेवाके लिए तैयार हूँ। इस समय प्रिटोरियाके भारतीयोंपर जिम्मेदारी आई है। मुझे विश्वास है कि वे उसे अच्छी तरह निभायेंगे। श्री हाजी हबीबके आतिथ्यके लिए सारा भारतीय समाज उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है।

इस प्रकार वहुत उत्साहके साथ काम पूरा हुआ और सात बजे सभा समाप्त हुई।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-७-१९०७

५७. भेंट: 'रैंड डेली मेल' के प्रतिनिधिको

ट्रान्सवालके सरकारी 'गज़ट' में प्रकाशित हुआ है कि १ जुलाईसे एशियाई कानून लागू होगा। इस नये कानूनसे सम्बन्धित वे धाराएँ भी प्रकाशित हुई हैं जिनके अनुसार सभी अंगुलियोंकी अलग-अलग और इकट्ठी छाप ली जायेगी। धाराओंके प्रति भारतीयोंका रुख जाननेके लिए 'रैंड डेली मेल' के एक प्रतिनिधिने श्री गांधीसे भेंट को थी और तारीख २९के 'रैड डेली मेल' में निम्नलिखित विवरण प्रकाशित हुआ है:

एशियाइयोंके लिए बनाया गया जो नया कानून प्रकाशित हुआ है उसे मैं या मेरे साथी कदापि स्वीकार नहीं करेंगे। किन्तु कानूनमें जो अन्तिम सजा कही गई है उसे भोगेंगे। इस कानूनको कोई भी स्वाभिमानी भारतीय स्वीकार नहीं करेगा। मुझे और 'इंडियन ओपिनियन 'के सम्पादकको जो पत्र प्राप्त हुए हैं उनसे मालूम होता है कि ट्रान्सवालकी भारतीय आबादीमें से लगभग ५० प्रतिशत व्यक्ति कानूनका विरोध करेंगे। मैने अभीतक एक भी ऐसा भारतीय नहीं देखा जो कानूनको ठीक समझता हो। कुछ लोग कह रहे हैं कि हम इस देशको छोड़कर चले जायेंगे। किन्तु ऐसा किसीने कुछ लोग कह रहें हैं कि हम नया पंजीयनपत्र लेंगे। भारतीयोंमें बहुत ही रोष फैला हुआ है और

[] इसके बाद जो विवरण दिया गया है वह “भेंट: 'रैंड डेली मेल' को", पृष्ठ ६०-६१ का सारांश है।

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