पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२२०

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१४३. खुले दिलको सहानुभूति

ब्लूमफॉन्टीनके 'फ्रेंड' ने एक सार्वजनिक सेवा की है और ब्रिटिश भारतीयोंकी हार्दिक कृतज्ञता अर्जित की है। क्योंकि जिस ढंगसे हमारे ट्रान्सवालके भाइयोंने अपने आत्मसम्मानको ठेस पहुँचानेवाले कानूनके प्रति अपनी घृणा प्रकट की है, उसका 'फ्रेंड' ने सहृदयतापूर्वक समर्थन किया है। 'फ्रेंड' ने उस विषयपर विचार करने के लिए एक सम्पादकीय लेखमाला छापकर अपने साहस और जनहितकी भावनाका परिचय दिया है। अन्तमें वह इस परिणामपर पहुँचा है कि एक अपमानजनक कानूनके बारेमें सत्याग्रह द्वारा अपनी नाराजगी जाहिर करके ब्रिटिश भारतीय बिलकुल ठीक कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि हमारे ट्रान्सवालके सहयोगी 'फ्रेंड' के अन्यत्र प्रकाशित उद्गारोंपर ध्यान दें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन,२४-८-१९०७

१४४. पाठकोंको सूचना

हमारी दृष्टिसे इस समयके 'इंडियन ओपिनियन' के गुजराती विभागकी कीमत नहीं आँकी जा सकती। इस कथनमें अतिशयोक्ति मालूम हो सकती है, फिर भी यह उचित है। ट्रान्सवालके भारतीय इस समय जबरदस्त संघर्ष कर रहे है। यह पत्र संघर्ष में पूरी तरह मदद देने में रत है। अतः हम हरएक भारतीयका कर्तव्य मानते हैं कि वह संघर्ष से सम्बन्धित प्रत्येक पंक्ति पड़े। पढ़कर उसका उपयोग करना है। पढ़ने के बाद पत्रको फेंक न दिया जाये। उसे सँभालकर रखनेकी जरूरत है। कुछ लेख और अनुवाद तो हम बार-बार पढ़नेकी सिफारिश करते हैं। इसके अतिरिक्त भारतमें हमारे प्रश्नकी चर्चा घर-घर होनी चाहिए। उसमें हमारे पाठक बहत मदद कर सकते है। सब अपने मित्रोंको 'इंडियन ओपिनियन' की आवश्यक प्रतियाँ भेजकर पढ़ने के लिए कह सकते हैं तथा इस सम्बन्धमें जितनी भी मदद दी जा सकती हो, मांग सकते हैं। इस अंकमें हमीदिया इस्लामिया अंजुमनका मुसलमानोंके नाम पत्र' है। हम मानते है कि इस अंककी सैकड़ों प्रतियाँ भारत जानी चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-८-१९०७

[१] इन्हें यहाँ नहीं दिया गया। देखिए "सच्चा मित्र", पृष्ठ १९३ भी।

[२]देखिए "भारतीय मुसलमानोंसे अपील", पृष्ठ १७९-८०

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