पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 7.pdf/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१४८. क्या नेटालमें खूनी कानून बन सकता है?

हेगर साहबके प्रश्न करने पर मूअर साहबने जवाब दिया है कि नेटाल सरकार भी ने टालमें ट्रान्सवालके समान ही कानून बनानेके सम्बन्धमें विचार करेगी। खूनी कानूनकी यही विशेषता है। उसकी बदबू केवल ट्रान्सवालमें ही नहीं, सड़ते हुए मुर्देकी बदबूके समान चारों ओर फैल रही है। इस हलचलसे निम्न बातें प्रकट होती हैं:

१. ट्रान्सवालके भारतीयोंपर बड़ी जिम्मेदारी है;
२. यदि ट्रान्सवालके भारतीय पीछे हट गये तो फिर हर जगह ऐसा कानून बन जायेगा;
३. और ट्रान्सवालका सवाल सारे दक्षिण आफ्रिकाका है।

इसलिए ट्रान्सवालके भारतीयोंको हर संकट झेलकर दृढ़ रहना चाहिए और इस प्रश्नको अपना व्यक्तिगत प्रश्न मानकर अन्य भारतीयोंकी पूरी मदद करनी चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-८-१९०७

१४९. सच्चा मित्र

हम ब्लूमफॉन्टीनके 'फ्रेंड' नामक अखबारसे एक लेखका अनुवाद दे रहे हैं। हमारी सलाह है कि उसे सब ध्यानपूर्वक पढ़ें। 'फ्रेंड' का अर्थ मित्र होता है और इस अखबारने भारतीय कौमके मित्रका काम किया है। उसने जो लिखा है उससे विशेष अच्छा होना सम्भव नहीं है। उस अखबारका प्रभाव बहुत है और जैसा असर उसके सम्पादकके मनपर पड़ा है वैसा हजारों गोरोंके मनपर पड़ा है। किन्तु अभी वे बोल नहीं रहे हैं। हम जब सच्चा रूप दिखायेंगे तब वे बोलने लगेंगे। 'फ्रेंड' के लेखसे इतना समझना चाहिए कि भारतीय समाज यदि इस समय जरा भी पीछे हटा तो कौमकी बदनामी होगी और तीस करोड़ भारतीयोंकी कीमत तेरह हजार भारतीयोंपर से आँकी जायेगी। 'फ्रेंड' ने हर्जाना देनेकी बात उठाई है। सम्भव है, यह बात आगे भी उठे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-८-१९०७

१. देखिए "खुले दिलकी सहानुभूति", पृष्ठ १९०।

७-१३