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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मरा हुआ ही समझना चाहिए। हम जानते हैं कि यह उनपर लागू किया जायेगा इसीलिए तो कहते है कि भारतीय मेहरबानी करके कानूनके सामने न झुकें। किन्तु इतना तो मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि तेरह हजार भारतीयोंको गिरफ्तार या निर्वासित करना जनरल स्मट्स या किसीसे नहीं हो सकता। यह स्वाभाविक नियम है। हर कानून अमलमें आ सकता है जहाँ बहुत लोग उसे माननेको तैयार हों। मैं यह कह सकता हूँ कि जहाँ सभी चोर हों वहाँ चोरी-सम्बन्धी कानूनपर अमल नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए, भारतके कुछ हिस्सोंमें ठग कहलानेवाले लोग ठगीका धंधा करते है, उन्हें किसी भी कानूनसे वशमें नहीं किया जा सका है। जब अपराधी लोग इस प्रकार मुक्त रह सकते हैं, तब भारतीय कौम जैसे निर्दोष लोगोंको क्या हो सकता है?

व्यापारियोंकी स्थिति

कुछ भारतीय विचारमें पड़ गये हैं और बहुतसे लोगोंको शक है कि वे आखिर तक टिक सकेंगे या नहीं। यह समय ऐसा है कि जिसके पास जितना धन है उसकी पीड़ा भी उतनी ही अधिक है। प्रश्न यह है कि धनका मोह कैसे छूटे। इसके अतिरिक्त, गोरे व्यापारी [उधार] माल देना बन्द कर रहे हैं। इसे मैं तो एक अच्छा लक्षण मानता हूँ। इतने दिन तक तो गोरे मजाक करते थे और मानते थे कि भारतीय जेल नहीं जायेंगे। अब वे समझने लगे हैं कि हमारा बाना सच्चा है। फिर भी भारतीय व्यापारी स्वयं क्या मानते हैं इसका विचार किया जाना चाहिए। गोरे व्यापारी यदि माल न देंगे तो क्या होगा? यह एक प्रश्न है। इसका सीधा उत्तर यह है कि नये कानूनको मान लेने पर भी यदि वे माल न दें तो हम क्या करेंगे? उस वक्त तो ऐसा प्रश्न भी नहीं उठ सकता। तब फिर आज यह प्रश्न भी नहीं उठता। और वे माल न दें तथा व्यापार न चले अथवा व्यापारको कम करना पड़े तो इसमें कतई आश्चर्य नहीं। यदि कोई भारतीय यह मानता हो कि समाजके लिए बिना नुकसान उठाय कानन रद हो सकता। कोई भी लाभ हो सकता है तो वह बड़ी भूल करता है। कष्ट या नुकसान उठानेके लिए तो हम बैठे ही है। यदि वह हम आज खुशीसे नहीं उठायेंगे, तो आखिर कानून द्वारा अपमानित होकर नुकसान उठाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। और उसके बाद जो हाल होना है उसका नुकसान भी उठाना ही होगा। ऐसी चिन्ता करनेवाला व्यक्ति बताता है कि उसने अभी शपथका अर्थ नहीं समझा है। जेलके लिए तैयार रहनेवाले लोगोंको मालके न मिलनेकी चिन्ता ही क्यों होगी? वास्तवमें उन्हें आजसे ही माल लेना अपने-आप बन्द कर देना चाहिए, जिससे पीछे कष्ट न हों, कोई रुकावट न रहे, तथा लेनदारोंकी रकम उनके पास पहुँच जाये। धनका त्याग किये बिना इज्जत नहीं मिलेगी। और न यह कष्ट सहे बिना राहत ही मिलेगी। जैसे-जैसे दिन गुजरेंगे हमें तरह-तरहके रंग देखनेको मिलेंगे। कई धमकियां मिलेंगी। बहुत नुकसान भी होगा। जैसे खुद मरे बिना स्वर्ग मिलनेवाला नहीं है, वैसे ही धन, जेल और निर्वासनको जोखिम उठाये बिना नया कानून रद होनेवाला नहीं है।

मनिकका निवेदन

श्री मनिकने श्री स्मट्ससे निवेदन किया है कि भारतीय व्यापारियोंको अलग बस्तीमें खदेड़ने तथा उनका व्यापार घटाने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए। श्री स्मट्सने जवाब दिया है कि नये कानूनका परिणाम जाने बिना दूसरे कौनसे कानून बनाये जायें, यह