पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/३१

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१. भूतपूर्व सैनिकोंका मुकदमा

[जोहानिसबर्ग

जनवरी ३, १९०८]

...दो भारतीय, जिनके मुकदमे उस समय स्थगित हो गये थे जब श्री गाँधी और अन्य लोगोंके मुकदमोंपर पहले विचार शुरू हुआ था, पेश किये गये और पंजीयनका प्रमाणपत्र पासमें न होनेके कारण, उनपर एशियाई पंजीयन अध्यादेशके उल्लंघनका अभियोग लगाया गया ...श्री गाँधीके साथी देशवासी लगभग एक हजार या १५०० की संख्यामें अदालतमें और उसके गिर्द जमा हुए थे और बहुत-सी आवाजोंकी एक दबी हुई फुसफुसाहट, जो अदालतमें पूर्णतया सुनाई पड़ रही थी, प्रमाणित कर रही थी कि इस कार्यवाहीमें उन्हें कितनी दिलचस्पी है।

...भारतीय सेनाके एक भूतपूर्व सैनिक, नवाबखाँ, पर जुर्म लगाया गया।

...श्री गाँधीने कोई प्रश्न नहीं पूछे, और अभियुक्तको गवाहोंके कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने उनसे नीचे लिखे अनुसार पूछताछ की:

[गांधीजी:] आप जमादार है?

[अभियुक्त:] हाँ।

आप ट्रान्सवालमें युद्ध के समय आये?

हाँ, युद्धके समय।

आप वाहन सैन्य-दलमें थे?

हाँ।

आपने किन-किन अभियानों में सेवा की है?

बर्मा, चितराल, ब्लैकहिल, तीरा अभियान (१८९७) और ट्रान्सवाल युद्ध।

और आप तीन बार आहत हुए?

मुझे दो बार गोली लगी और एक बार आँखके ऊपर घाव लगा।

जब लॉर्ड रॉबर्ट्स कन्दहार गये थे तब क्या आपके पिता उनके कर्मचारी-मण्डलमें थे?

हाँ, वे सूबेदार मेजर थे।

१. ये मुकदमे २८ दिसम्बर १९०७ को, जब कि गाँधीजी और कुछ अन्य भारतीयों के मुकदमोंकी सुनवाई हुई थी, स्थगित कर दिये गये थे। देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ४५८-६४

२. उच्चायुक्तके नाम भेजे गये उनके प्रार्थनापत्रके लिए देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ३८४-५

३. कन्दहार, प्रिटोरिया तथा वाटरफोर्ड के फ्रेड्रिक स्ले रॉबर्ट्स (१८३२-१९१४); फील्डमार्शल तथा भारतके प्रधान सेनापति १८८५ से लेकर १८९३ तक; १८९९ से लेकर १९०० तक दक्षिण आफ्रिकाके प्रधान सेनापति; प्रथम विश्व युद्ध के समय १९१४ में यूरोपमें समुद्रपारीय तथा भारतीय सेनाओंके प्रधान फर्नल; भारतमें ४१ वर्ष (फॉर्टीवन इयर्स इन इंडिया) के लेखक। बोअर युद्ध के समय गाँधीजीका नेटाल डोली वाइफ दल उनके लड़केका शव युद्ध-भूमिसे उठाकर लाया था; देखिए आत्मकथा, अध्याय १०। बोअर युद्धके अनन्तर रॉबट्रेस यून्सवालमें आधिपत्य सेनाके मुखिया रहे। इस अवधिमें गाँधीजीने उनकी भारतीयों के प्रति सहानुभूतिकी चर्चा की है; देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३२६। किम्बलें की मुक्तिपर उनको भेजे गये बधाईके सन्देशोंके लिए, देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १५३।

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