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'स्टार'को उत्तर

इसलिए मैं अपने संघकी ओरसे आपकी सेवामें औपचारिक रूपसे निवेदन करता हूँ कि चूँकि ब्रिटिश भारतीयोंके बहुत बड़े अंशने एशियाई कानून संशोधन अधिनियमको आन्तरिक प्रेरणाके कारण मानने से इनकार किया है और चूँकि उनके लिए अपना व्यापार करने अथवा फेरी लगानेके अतिरिक्त अपने जीविकोपार्जनका कोई दूसरा साधन सम्भव नहीं है, उन्हें बिना सही परवानोंके अनिच्छापूर्वक अपना धंधा करते रहने पर विवश होना पड़ा है। मैं यह भी कह दूँ कि यदि परवानोंसे सम्बन्धित नोटिस वापस ले लिया जाये और आप परवाने जारी करनेकी कृपा करें तो आपकी ओरसे सूचना प्रकाशित होनेपर परवाना-शुल्क तत्काल जमा कर दिया जायेगा। और ब्रिटिश भारतीय व्यापारी तथा फेरीवाले परवाने निकलवा लेंगे।

आपका, आदि,

[ईसप मियाँ

अध्यक्ष

[अंग्रेजीसे]
ब्रिटिश भारतीय संघ]
 

स्टार, ६-१-१९०८

इंडियन ओपिनियन, ११-१-१९०८

५. 'स्टार' को उत्तर

[ जोहानिसबर्ग ]

[ सम्पादक

'स्टार'

जोहानिसबर्ग ]

महोदय,

आपने एशियाई प्रश्नका विवेचन करते हुए कहा है:

आज जब कि मामला इतना बढ़ चुका है, हमारे विचारमें सरकारके लिए अपनी प्रतिष्ठा खोये बिना इस आन्दोलनके आगे झुकना सम्भव नहीं है, क्योंकि इसका प्रभाव उन वतनी जातियोंपर पड़नेकी आशंका है जो स्वयं भेद-मूलक कानूनके अधीन अपना जीवन बिता रही हैं।

उपर्युक्त बातसे क्या यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यदि बात इस हद तक न पहुँच गई होती जितनी पहुँच चुकी है, तो आपकी सम्मतिमें एशियाई मामला इतना मजबूत था कि उसपर पुनर्विचार करना ही पड़ता। फिर भी यह निष्कर्ष औचित्यपूर्ण हो या न हो, मैं आपकी अनुमतिसे इस प्रश्नके धार्मिक पहलूपर ही विचार करूँगा।

मैं आपको इस बातकी याद दिलाना चाहता हूँ कि प्रथम सार्वजनिक सभाके अवसरपर जो पुराने एम्पायर नाटक घरमें सितम्बर १९०६ में हुई थी, ब्रिटिश भारतीयोंने बहुत सोच-

१.देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४३०-३४।