पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पवित्रता , तक इसको ब्रह्मकान्ति का महा आकर्षण, स्वाभाविक बुद्ध न बना दे तब तक यह अपना क, ख, ग, घ, और अ, आ, इ, ई इस देवी के सिंहासन के पास बैठकर पढ़े, जो कुछ हो गया या बुद्ध पैदा ही हुआ उसे आपको भिक्षुक होने का उपदेश देने की क्या आवश्यकता थी ? आपको किसने उपदेश दिया था कि आप कपिलवस्तु राजधानों को लात मार युवअवस्था ही में ही ब्रह्मकान्ति की तलाश में-उस अनजानी ज्योति के स्वरूप की तलाश में जङ्गल २ घूम अपने शरीर को सुखा लिया, हड्डियां कर दिया, ए भगवन् ! आकर अब ज़रा देखिये तो सही, आपके बाद आज तक बुद्ध कोई न हुआ। किसी माता को अापकी माता के समान ब्रह्मकान्ति का दर्शन लाभ न हुआ और कोई माता भी ब्रह्मकान्ति को अपने गले में ले वुद्ध को अपने पेट में अनुभव न कर सकी । आपका नाम ही नाम रह गया है जिसके सहारे कई ईंट पत्थर रोड़े के मन्दिर खड़े हो गए । बुत बन गए परन्तु मनुष्य डूब गया । इसके नीचे आ मर गया, मनुष्यता अपवित्रता की कीचड़ में फंसकर मर ही गई। जिसके बचाने के लिए आप आए थे वह नं बचा ! ए शङ्कर भगवन् !-आपसे बिनयपूर्वक अाज्ञा मांगकर आपकी सेवा में उपस्थित होता हूं - आपको तो हिमालय भाता था, आपको तो वेद श्रुति दर्शनग्रन्थ, ब्रह्मकान्ति के दर्शन, कोई और काम न करने देते थे, आपको कोई और हल न चलाना था। आपके दर्शनों ही से सूर्य और चन्द्र उसी नोली खेती में ज्योति स्वयमेव वोते थे। परन्तु में तो एक अपने अपवित्र देशनिवासियों के विरुद्ध अपील लेकर आया हूं, आपके जाने के बाद स[सं]न्यासाश्रम का नाश हो गया। सच कहता हूं, मेरे देश का संन्यास अपवित्र हो गया, क्षुद्र हो गया, आपने तो इन लोगों की खातिर अपने एकान्त के सुख को जो, आचार्य गौड़पाद ने भी न छोड़ा, त्यागकर इनके कल्याण के लिए दिग्विजय क्रिया। काश्मीर से रामे- श्वर तक आपने ब्रह्मकान्ति का गायन किया। परन्तु आपके जाने के बाद n