सच्ची वीरता n चढ़ाकर मैं अपनी देवी को प्रसन्न करूँगा और अपना यज्ञ पूरा करूँगा ।" भगवान् ने मौज में आकर कहा “अच्छा कल, यह सिर उतारकर ले जाना और काम सिद्ध कर लेना।" एक दफे दो वीर पुरुष अकबर के दबार में पाए । वे लोग रोजगार की तलाश में थे। अकबर ने कहा-"अपनी अपनी वीरता का सुबूत दो ।' बादशाह ने कैसी मूर्खता की । वीरता का भला वे क्या सुबूत देते ? परंतु दोनों ने तलवारें निकाल ली और एक दूसरे के सामने कर उनकी तेज धार पर दौड़ गये और वहीं राजा के सामने क्षण भर में अपने खून में ढेर हो गये। "ऐसे दैवी वीर रुपया, पैसा माल, धन का दान नहीं दिया करते । जब वे दान देने की इच्छा करते हैं तब अपने आपको हवन कर देते हैं । बुद्ध महाराज ने जब एक राजा को मृग मारते देखा तब अपना शरीर आगे कर दिया जिसमें मृग बच जाय, बुद्ध का शरीर चाहे चला जाय । ऐसे लोग कभी बड़े मौकों का इंतिजार नहीं करते; छोटे मौकों को ही बड़ा बना देते हैं । जब किसी का भाग्योदय हुअा और उसे जोश आया तब जान लो कि संसार में एक तूफान आ गया। उसकी चाल के सामने फिर कोई रुकावट नहीं आ सकती। पहाड़ों की पसलियाँ तोड़कर ये लोग हवा के बगोले की तरह निकल जाते हैं, उनके बल का इशारा भूचाल देता है और उनके दिल की हरकत का निशान समुद्र का तूफान देता है । कुदरत की और कोई ताकत उसके सामने फड़क नहीं सकती। सब चीजें थम जाती हैं । विधाता भी साँस रोककर उनकी राह को देखता है । यूरप में जब राम के पोप का जोर बहुत बढ़ गया था तब उसका मुकाबला कोई भी बादशाह न कर सकता था । पोप की आँखों के इशारे से यूरप के बादशाह तख्त से उतार दिये जा सकते थे । पोप का सिक्का यूरप के लोगों पर ऐसा बैठ गया था कि उसकी बात को %3 ५५