पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१२५

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पारस्योपन्यास । - कीटक, कपन, मास्यास, कम्पास, इम्प पी पिनियोग प्राधिसमी पासे इसमें मीद है। जिन्होंमे “पारप्योफ्न्याम" र्यात् प्ररेपियन यह भी लिखा गया है कि किस काम के लिए मााटस की कहानियाँ पढ़ो, ठमके सामने यद किस मंत्र का संपुट लगाना चाहिए । पेसी प. पतलाने की प्रायश्यकता मदी कि पारस्यापन्यास सम पाधी का दाम केयल .. ' ' की कहानिया फैसो ममारक पर प्रमुन है। वार्किकमोदमाश (पुतर्कियो कामदया । परदेशीय सहन रखनी-मरित्र के पढ़ने यालों रसरहस्य (प्रेमियों के मेनने पाम्प) . ..." को एक बार पारस्य उपन्यास भी प्रपश्य पदमा प्रीतमविहार (श्रीरामचन्दनी के प्रेममनन) j चाहिए । मूल्य १) इरान्तसमुपय (उपदेश मरे हटान्तों का संप्रद). भापान्याकरण । महिमस्तान ... ... ... ..." धोयुत पण्डित चन्द्रमालिशम, एम. प. प्रति एकमुखी हनुमन्कयच ... ... ...." स्टेंट हेवमास्टर, गपमेंट हाईस्कूल, प्रयाग-रचित । नूतनचरित्र। हिन्दी माषा की यह प्याकरण-पुस्तक ग्याकरण (बापू रखकायबी. . वीमाईकोर प्रगम लिलि पदानेपाले अध्यापकों के तड़े काम की चीज़ है। पोतो रपन्यास-प्रेमियों ने भनेक उपायाप्त विपार्थी भी इस पुस्तक को पढ़ कर हिन्दी-प्यावरण परमारा मामलायम होने पर का बोध प्राप्त कर सकते है। मृत्य) रथम उपन्यास पाम तक दो महीं देखा होगा। कालिदास की निरङ्कशता । इसलिए हम बढ़ा ओर देकर कहते किए 'नूनमचरित्र' को अयश्य पहिए । मूल्प ). " (तारित मामिप्रमादमा द्विवेदी) पोडशी। शिपी के प्रसिद्ध लेखक परित मदापीरप्रसाद बंगला के प्रसिय प्राण्यापित भीपुर निषेदीमी मे "सरस्पती" पत्रिका के बारह भाग में प्रभातकुमार वान् की प्रमापशालिनी रेखानी है "कालिदास की निरएशता" मामफी लेखभाला लिपी गां१६ मायापिकानों का यह समाहगता. प्रकाशित की पी पद, प्रमेक दिया-प्रेमियों के प्रामद में बहा प्रमि । सी पोलीका यह हिली. करने पर, पुस्तकाकार प्रकाशित कर दी गई । पाया अनुषाद पार कहानिया हिन्दी में एकदम समी दिदी-प्रेमी इस पुस्तक को मैगा कर प्रपा पार पदमे पायामन्य १२७ पृष्ठकी पापी का देखेंगे। मूल्य के पार पाने । विचित्रवधरहस्य। मारोग्य-विधान । पंगता के प्रसिय मेव मारपीमापार महारानिषित "चलायमीरदार"मामक बंगला नीपंग रहने के सुगम पायो का पर्यन । मुम्प ) उपन्यास का यद हिन्दी अनुपाद 'पिनियस'. दुर्गा सप्तशाती। के माम से तयार दो गया.पिन्याम तिमारा. हमने यह दुगो की पापी हो मुन्नर पारसी परमा हिमनी मदत्यपूर्ण, अपाम ६। मान भी इसका मोटा पर भार भी मई का भाप कैसा उचम है, पाटकोपरासी कान मेटे६मपमा गानेपासे पिमा परमा गाये ही कासा प्रभाव पड़ताईस्पारिपात उपन्यास इसका पाट पर मलेवा सुय पी। पाठकों को स्पर्ष पिरिव दो मागी। मृत्य पुस्सप मिलने का पता- मेनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग ।