पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१२८

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      • इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तकें *** .

मर्याद सीतावनवास । पाले मदीं विदेशी विद्वान् भी लद है। संस्सत में जैसा दिया यह माटफमा १ पैसा दी मनोहर सुप्रसिस परिडत घरचन्द्र पिपासागर लिखित यह दिन्दी में लिया गया है। कारण यह कि इसे तार-यमपास' मामा पुस्तक का यह दिम्दी. हिन्दी के सच्चे पालिदास राजा लक्ष्मणसिंह मे पाद "सीतायमपास" उपकर तैयार है। इस अनुपादित किया है। सीजिए, देखिए तो इसके पदने क में धीयमपदमी-कल गर्मपती सीताजी के मेसा अनुपम प्रामन्द प्राता है । मूल्य, स्वाग की पिस्तारपूर्वक कथा पदीदी पंचक पीर म्गरस मरी मापा में लिपी गई। इसे पद मुकुट । कर पायो से पापों की पारा पदने मगती यहगला के प्रसिर लेखक भीरपीन्द पार के गर पागणदय भी माम की तरह पीमत ही बंगला उपन्यास का दिदी अनुपाद है। मामाई पास ता। मूल्य में परस्पर प्रनबन दोमे का परिणाम क्या होता है- गारफील्ड । इस छोटे से अपन्यास में यही बड़ो यिसमणता के इस पुस्तक में अमरीका एक प्रसिल प्रेसी. साप दिलाया गया है। इसे पढ़ कर लोग अपने

“जेम्स एवरम गारफीट"का गीयनचरित

मन को धमनम्य के दारों से बचा सकते है । मूल्य ।) या गया है। गारफीट में एक साधारण रिसान युगलांगुलीय। पर सम्म मेकर, प्रपने उत्साद, साइस पार कम्प के कारण, अमरीका के प्रेसीडेंट का सर्पोरा 'प्राप्त कर लिया था। भारतप के मप पुषों रोमॅगरिमा इस पुस्तक से पात प्रप्या उपदेश मिस मकता बंगला के मसिर उपन्यास-लेखाकिम पा के माम से सभी शिक्षित मन परिचित है। सही के हिन्दीभाषा की उत्पत्ति। परमोत्तम पार शिक्षासमक उपन्यास का यह सरळ (बेता पनित महापीरप्रसारमी विकी) हिन्दी-पनुपाद उपकर तैयार है। यह उपन्यास च्या खी, क्या पुरुष सभी के पढने पर ममम करने यद पुस्तक हर एक दिन्दी जाममेपासे को पत्नी । योग्य है । मन्य। हिए। इसके पढ़ने से मालूम दोगा कि हिन्दी पा की उत्पत्ति का से। पुस्तक बड़ी घोडके स्वलिता। पि लिपी गई है। हिन्दी में ऐसी पुराफा इमारी (रोश और शिवादापक सामाजिक पम्पास ) य में, प्रमी तक कही नदी उपी। एक हिन्दी ही इसमें पीर मी कितमो दी हिन्दुस्तानी मापापों यह रपम्पास प्रत्येक पक्षण को पढ़ना चाहिए । । विधार किया गया है। मुम्प ।। इस उपन्यास को पृहस्वामम का मया सवा समझमा वादिए । गठा में इस उपन्यास की इतनी शकुन्तला नाटक । प्रतिष्ठा कि. १९०८ क इसके १५ संस्करण कविशिरोमणि कालिदास के मामको काम मही निकल चुके है। इस रपन्यास की शिक्षा बड़े महत्व मिता शम्तमा माटक, एन्हीं फपियशामणि की है। हिन्दी में यह उपन्यास अनुपम । ३९१ लिदास का एषा हुमा है। इस माटक पर यहाँ पृष्ठ की पार्थी का मून्य. ११) पुस्तक मिलने का पता-मैनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग ।