पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१४५

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ही इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तकें -rom~~...- - ... .... ...... कविता-कलाप स्वशिक्षा का एक साचा, मरा और ( माग~ मापीरप्रमार्ग दियो । . सीता-परित । .' इस पुस्तक में मरस्यती मे प्रारमा करके ४६ पी सकसी पुस्तक का प्रकार की सचित्र फपितामों का समय किया गया भी जिसमें प्रारम्भ से अन्त तक मारा है। दिनी के प्रसिद कवि राय देयोप्रमाद पी. ए, सीता जी की मनुकरणय जीपचर पी० पल, पण्डित मायूराम श शर्मा, पटित विस्तारक यन दो, जिसमें मानावी फामताप्रसाद गुरु, पात् मैथिलीशरण गुप्त पीर की प्रत्येक मटमा पर जियोगमा परिपत महायोगप्रसाद हिदीजी की पाजस्पिनी दिया गया सी भापकर त सेम्पनी से लिपी गई कविताों का यह प्रपूर्य मंगाद लिए हमने "सीता-पग्नि" मामक पम्न प्रत्येक टिम्मी-मागमापी को मंगाकर पदमा धादिए। कीसमें मीतासीगी जीपी tree इसमें पर चित्र रंगीन भी है। ऐसी उत्तम मचिम पर्पक लिमीदी गांई,स्नुि गायकी उनी पुस्तक का मूल्य कंपल 1 दो रूपम् । घटनामों का मदाप भी विस्तार के माप दिक (सचिर) गया है। यह पुम्नक अपने दंगी मेरा हिन्दी-कोविदरनमाला । भारत पर्ण की प्रापन. मारी यह पुस्ताका मैगा पर पड़नी पाहिए । इस पुस्तक दो माग महाँ पुगप भी मनेक शिक्षा प्रहर परमो ( पाप स्पाममुदराम ०९. सम्पादित) पयोगिसमें मग मीतामील ही नहीं। पहले गाग में भारतेख पा हरियाद पार रामररित भी है। प्राशाही -FTHIमीम महर्षि दयानन्द सरस्पनी से मेकर पर्तमान कार शय पताका प्रगार पर रिपोका पाक राको हिन्दी में मामी मामी गानिस मेपी पार धर्म की शिक्षा में प्रमाल करने में पूरा सहायकी मानप्रति जीपन-धारेत दिये गये करेंगे। पर भाग में पटित महापीरप्रसादजी शिपदी पृष्ठ २३५ काग: मोटा। राय तथा पण्टिामापपराप ममे, पी. ५० प्रादि फ्रिानो तो भी ममापागाईगुभीले रिप मुस सपा कापियुष रिजयो रिसीयनपरित टापे गये दी पाम सिंपल !) मा रूपा। .. हिन्दी में पुम्स प्रपने रंग की कमी दी फविना कुमम-माना ! ।एको में पीकदामों में पर्मपारी को ये पुना पारितोषिक में दम पार । प्रागर हम पुमार मलिपिप गित दिदी-भाग-भापी का यह 'सिमानामगारर अपना पाटी मिरिया पनि परप्ट पप गभूगिरमा गादिए । मरो गाग गिनी मागिती... में..दादाम निरगि। मून्य मागेरमाग कामहरिनीतिापमान कामपा, पर माप दानी मागोंय मल्ल पमा प्रारी प .it मार मर। पमे। Tere कपा-मैनेजर, इंडियन प्रस, प्रयाग । ' . । Priceनारमा