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पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१४७

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  • * * इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तकें * *

चरित्रगठन । ई में भी एप गया i nterrit पाठक इस पपपागी पुस्तक को मगर बामपयुपक विधायी परिवगठन के प्रमिलाण माम रठायेगे। मुख्य इस प्रकार है तो इस प्रयादय ही परें, पर पिदशेप पर उन्हो पन्युफेशन दम मिटिश दिया गरेको के लिए यह पुस्तक बनाई गई है। इस पुस्तक को भारतवर्ष में सिमीप शिमा नी पद पर पाप तो माम रठागेही भिन्तु अपने मापी हिन्द में भगरती नाहीम (ईमा । सम्तानों को भी पिशेप माम पहुँमा मगे। इस पुस्तक के सभी पिपय सुपाम्य है। जिस पम्प से कर्मयोग। मनुष्य अपने समाज में प्रादर्श बन सकता है उसका स्यामी विकासम्पनी कामा स्लेिख इस पुस्तक में विशेष पसे किया गया। साम्पानी का दिन्दी-अनुयार पाकर पति, पदारना, सशीलता, दया, समा, प्रेम, प्रतिः पाग" मामक पुस्तक पापी गई। योगिता प्रादि प्रमेक पिण्यापर्टन उदाहरण पायायाममध्म -कर्म माम साप किया गया। प्रतपप यशपातक, स्यमय. पर प्रमाप,२--निमाम कर्मका मारव.५ क्या पुया, क्या सोसमी इस पस्साको पक पार ६१.५-परमार्प में स्वार्य,-सागर अपाय पर मन में 4 पार इससे पूर्व साम त्याग ,-मुनि पर पागल पठाये । २३२ पटकी ऐसी उपयोगी पुस्तरका मन्य (न पिपोका पानी मिी । माममात्र के लिए संपत रह पामा । किया गया। प्रध्यामपिया पार्मपागत को पर पुस्तक प्रपाप पहनी पादिपरामर कुमारसम्भवसार । संक्षिप्त इतिहासमाला। (ग-पगित महाtrममानी ) सीलिए, दिनी में मिमीर कधि-सिगुरु कालिदास "कुमार-मम्मव" समीपतिमी प्रसाद पाk गाय का पद ममोदर मार पर तैयार हो गण। वागण। प्रसिद सेबपरित यामपि time प्रत्येक हिन्दी कपिता-प्रेमीको हिपदी जी की पर पार पापत शदेपयिदारी मिमी मनोहारिणी पपिता पढ़ कर भानप प्रामसरमा समाप पप्पोसमी प्रसिय मिरर पाहिए । कविता पो रमपती पर प्रभाषशानिमो दिल्ली में सक्षिा तिवारीयार Ham है। मुन्य कंपन, पार गर्ने। गण है। पद समम्म ममामाई भारतवर्ष म पश्चिमीय शिक्षा। मपान में पूर्वागीपीमा हिन भंस, प्रयाग,में प्रशित भीमान पपित मानान Tी प.प. तर , मामको काम हो जाता | रन पर १-मनीदारा सीमिच मेगा पापने पिम्युफेराम . २-प्रमनिराम मरिया "नाम पर पुराना गरेगे -nाम नणेपर पर प्रेम, प्रपा पापहर गर , महामान लिया है। पुलकीमापापामदिराम .. कप: remiuीगर - REA S मिमने का पता-मेनेजर इंडियन प्रेस, प्रपाग । u