पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

म्या २] हिन्दी भानि-प्रकवरी। दहा सकती हैं। उनमें मुम्य पार पड़े काम की यह मोर काम सुंदर तास है पालम परा को मेस मुंबस को 'न-प्रकवरी है जो पूरी मिले पार शुर करके पवार रिपुषण पर सिपान समात्र है। नाटिप्पणी के साथ छापी आये तो हिन्दी-माण्डार पालम भरा रोधियारी भारी माघ 'फ अपूर्व रत कर जाये। पेवुता मुत प्रतापसिंह राव मगराब है दोस हम हिन्दी-रसिको पार विशेष करके इतिहास- संबत अष्टादस सन पावन अधिक पुनीत । त्यों के मनोरम्मन के लिए इस हिन्दी प्राईम- पास मास तिपि पंचमी किपा प्रारंभ इहि रीति जरी के दो पत्रे ज्यों के स्यों भासान लिपि पार हाप मोर सिर नाय के नृप की ग्राम्या पाप । श्री में प्रकाशित करते हैं पार मूललेखक के दो मामा विप मापा लिपी पवनग्रंथ को भाप ॥२॥ लिए माफी मांगते है। स्योबास रामास मुनसी हुकम पायो। वप कम देवीप्रसाद । मेसीस पड़ावो पर लिपप को भारंभ किया। परम सेवक हिन्दी पाईन-मकबरी का नमना । प्राम्याकारी गुमामीराम कापल्प। पहले दो लोक है।पी यह दोहा है- मी मापा मवनकी भागीणोड़। परमवशी मास रवि सो तेय प्रताप । हो तो पंडित मत सो मत कालीम्पो सो निमानिसान जगत को इस्पती भूप भाप । प्रम रोप पवन चोरता प्रभु को नमस्कार श्रीमन मातापिरान श्रीपरममरति भरमावतार करके प्रकार मावणार की तारीफ दिख स त ने पीपति मरिम-प्रसार स मीरोमणि मानिधान परबई के पाकी बढ़ाई पर पेष्ठा पर थिमबार कहाँ रेत शिपय गुणसागर पिसे ही इस से पीतल वा लिपे । करी पात माही। तातें माको पराक्रम पर एत समान मंगयणं सय हनिम मिरमार श्रीरामारा मांति भांति स्वर वा ममममा नया में प्रगार मय । माराजाधिराम भोसवाई प्रतापसिंहजी बंप भाग्यान' ताको संपेप भिनीत प्रथम तो पावसार भाम साया निमेष पाईन-मारी की भापा-बचनका बपा-प्रनि को भर्य बिके है। ती। रोहा- बार-फारसी माषा में नित रोताकोकासार . मम नृपति को पाप प मया परकारा । प्रेम प्रप्ता बा साहब। मोबावस्या को प्रातंग मे रविकेदप सी प्रकार को मास 1 दुनिया में न होय तो बात की प्राति से मिरे पर संसार को अपनपा मे माप । भादमी तो कोष वा तृप्या में इससम राजे रसुरा- राम . अब रहयो । पटक परापकरे। याते पावस्थाही का गादी पर मीच बाम गुप को महास। भरतपरके दुनिया को विपन मिरे पर दुनिया का वेग माम्या में रातो ऐसे मो अपनी एबा पुसी धू म रेस का राजा पा पम्तस्वाद को प्रसंग ॥ दूसरा पह हुक्म मा पा पर लेक पासत मैं-दी चोदमे की गोनपुर का पातमा। तीसरा में मारा का राहपः । पर भी स्पाह रससू करते सब पर सरोपर रसा॥ दोष । मसे स्पाइ सवार भर स्याह राह मो भना सवार अन्त ॥ इति गुखसम मा तारीव की संप भर मनी राह पर मासे थे मी काते -मोहमया वा संपेप ।। संत का प्रमाणे शासी दुबान परे । सोम् परमों में दोहराता कामाने मिति हम्प परे परपा र तिथी बासरे इस पर का एक परम गापा है। पिछले दो वा रेवतीय र बिपितं । में भी पड़ा ।