पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१९८

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संख्या २] मनाय पालिका । - - - - - र फिर नि म उसकी और देश किपे । अब तुम्हारी रामसुन्दर पड़े मिमीप्त माय से योगा- नीचता इतनी गई कि मुमसे भी हमी प्रकार के प्रश्म "मामानी ! पात्र में अपने घर का एक रहस सुनाता हूँ। म मागे । मम तुम्हारी मैतिक अवस्था पर पड़ा दुन् । म्सी के विषय में मैं और माई सतीश पर रयर को मीच सतीश की पाकपास पुन र रामसम्बर को जरा पूमा किपे । मगर सावता सो क्या, गसके चिसा भी नहीं गो कोपन भाया । उसने बड़े बिनीत भाव से कहा- मिक्षे । प्रप मैं इस रास्प को सुमाताई। मेरे पिता दो ____"भाई साहस, माप स्या का है। मोप मापने भाई पेामप्रसाद और शिवप्रसाद । रामप्रसादजी मेरे पिता मेरे भाषण के विषय में कहा कि । पर पहभाचाय थे। शिवप्रसादजी के एक म्या थी, मिसको पर योग किस एि से देखना चाहिए, इस पर मापने विचार मी स्ना-बरा मीमा करते थे। वह मुझसे एव पेटी किपा मैं समझता कि हमारा सैकमे मीम पर भर पी । मेरे चाचा, नहीं के पिता का ऐडान्स मेरे पिता के एममा कार मा। जिसकी ममे वतारा भी यह हमारे सामने ही हो गया था । मेरो पापीसी का स्वमाष पा र में मार सकताक पार मेरे मी में सम मा । ये अपमी मान की बड़ी पकी पी। एक दिन मेरे पाया कि अपनी ममीको से सगा । पाप मामानी पिता मे किसी घरेलू बात पर गुस्सा होकर सनसे पर से से इसके विपप में पविए तो मेरा प्यारा बाप निम्स साने की पात पी दुरी बात परपी। इसके लिए सिहो गया। समको सदा पात्ताप हा भार इस पो भारी भा को साप बड़े ही विस्मप पर सबमाता के साप सतीश ने सिमे ही गाने इ-मोक परिस्याग किया । मेरी पारी में मा-"राममुन्दर क्या सच काते दोपही तुम्सरी पदिन पसी रात को पर पोड़ दिया । ममी को भी सामने मगी"? गई। मेरे पिता ने बहुत तवारा की, पर पता न मगा । मरवे "मेरी अवस्था प्राउ पर्प की पी जय प्यारी नदी म समय ग्नीने मुमतो अन्तिम समीमत के तौर पर यही का से सदा ई पी। मुमे पर तक रसका चेहरा .पण पाद है। कि जिस तरह से अपनी चाची धार पहिन का पता करमना । या सिताप्रा और स्वगायकातिर हरा भास भी मेरी परि पहा मग माय दोशनको सम्पधि में उस दिन तक परियों के मामले फिर गा है।सरना से उसम्म भोरा पात सूप के मनको दे देना । इस तर मेरी मारमा पर मितता है। मुझे पूर्व पार, सके गाल पर दो पेरे छोटे सोपोने की पेश करना । मेरा गपा-माय इसे ही समयमा । स्सार तिम। सरमा परे पर भी से । चलिए, मदि पता म बगे तो तू भी विचार मत करना । अपने शरीर मामानी से इसके विपय में पुरु पाइरें।" सापही वंश की समाप्ति कर देमा । क्योकि इस खट्र दोनो मित्र तकार शापय सहप रेम्मरे में पाये। के साप पंगादि रमा मानो कलाको निन्दा रखना है। चालय साहब पाराम-करसी पर बोरे बाई म्पबसाप-सम्पन्पी पेरा, बश-माश ही इस पाप का एक बोय सा, पर ममानक पुस्प पहना ही चाहते किये रोषो वही पांच गये। प्रापमित पाणा है, तुम इस प्रापमित हारा मेरे पारण अपने बंश पर लगे इस बफ से उसको मुकरने "सतीश, अब पाराम नो । बहुत परे हो"। पासत हुई सो-सुप्रपा मोगे।' पाकर बाते सतीश धीरे से मा-"भामामी, रामसुम्पर सरमा मेरे पिता के प्रायपोर म गये । इनकी सयु के बार विषय में मापसे का पलना चाहते " से दी में म्पन था कि इस विषय में क्या कहें । माई सतीश- रास्टर साहब ने माषपूर्ण परि से रामसमर को देखा, कम से मैंने अपना हम लोग कर का दिया था और जिसका चरा र और विस्मपमिए माव से एक इन्होंने सदा की तह मेरे इस गुम्स में मी माग देना स्वीकार विशेष प्रकार का प्राकार पारपसापा। कर दिया था। प्रब, सा कि मापको मासूमदम सेना राय साहब ने कहा- ' समग मीच काम और न मालूम किन किन मुसीबत "सरमा के पिपप में भाप क्या और क्यों पहना को मेवर पापिस मा गये और कार्य-सिसि महुई। पर, पहा मार मापके पहा सबा को देखकर मेरी अन्तरामा