पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२०२

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संख्या २] __हिम्दू-गर्ल्स-स्कूल, लखनऊ। gmIITA हिन्दू-गर्ल्स-स्कूल, लखनऊ। समय से इसमें संस्कृत, हिन्दी, अंगरेजी, सीमा- पिरोना, कसीदा, चित्रकारी, भोजन बनाने की विधि, ( परन में दिन-पारियों का स्ट्रम) स्यास्थ्यरक्षा के नियम, धर्मशिक्षा प्रादि सर- Mobiस स्कूल को, सन् १८९५ ईसयो फारी पाठ-पिधि के अनुसार दी जाती है। sammat में, श्रीषा हीरालालजी राय १९१० ईसयी तक यह स्कूल केवल पाये 2] इ#6 में पाली कपको पीर लड़कियो दरसे सक ही था । जबसे हिन्दी मुम्य मापाई सलाम के लिए स्थापित किया था । उस तब से इसमें षिशेप उमति हुई। अब यह फस समय इसमें मंगला पौर अंगरेजी स्लोभर मिटिल तक है । िलयफिया मिरिक परीक्षा की शिक्षा दी जाती थी । कुछ समय पश्चात् उस में उत्तीर्ण हो। शुकी है। इसमें धर्म-शिमा पर उस्साही पुरप के मन में यह पाया कि इस प्राप्त विशेष ध्यान दिया जाता है। की कम्पायें भी यिघा से पञ्चित न रहें । इस स स्कूल में पारितोषिक वितरण के लिए कारण उन्होंने इस नगर के नियासियों को स्त्री-शिक्षा श्रीमान् लाट साहय महोदय मे भी दो वार पधारने के प्रचार के लिए प्रोत्साहित करके हिन्दी के दरजे की छपा की है । प्रथम पार हर जान हिपेट साहब, खोल दिये पार सन् १९९० ईसयो में दावटर २७ नयम्पर १९०७ ईसवी को, सपनीक पधारे थे। हरिच पम्त को फल की प्रवन्ध-कर्तु-समा का दूसरी बार सर जेम्स मेस्टन, २२ फ़र्षरी सन् प्रधान नियत किया। जिस समय से राक्टर साहय १९१५ ईसपी की, सपक्षीक पधारे। भीमान् हिवेट मधान हुए, इस स्कूल मे बड़ी सनति की । रापटर महोदय इस फूल से इसमे प्रसन्न हुए कि २०० साहम के परिश्रम से पढ़े बहे राजा-महाराजा रुपया मासिक सहायता देना उसी समय से स्वीकार भी इस स्कूल में पधार पर यथोचित सहायता कर लिया । श्रीमान् सर जेम्स मेस्टन फन्यानो भी की। की पतता तथा भजन मादि सुम पर इतने प्रसप महारामी षिमयानगर मे ५००० रुपये इमारत हुए कि एक कन्या के स्त्री-शिक्षा-विषयक ष्यास्यान के कोश में लिये रानी हयमा मे ५०० रुपये पार पर मापने अपमो समालोचना में यह कहा कि मओ फुघर भुषनरन्जन मुकुरजी, वाल्लकेदार, शहर- कुछ इस छोटी सी कम्पा मे कहा है उससे अधिक पुर (प्रयपरेली) ने भी ५०० रुपये से सहायता में नहीं कह सकता। मापने यह भी कहा कि जिस की। इसी तरह पौर भी किसमे ही पदारपदय समय स्कूल की इमारत के लिए सहायता मांगी सम्मनों ने कोई दो हजार रुपया स्थायी कोश नायगी उस समय गवर्नमेंट विशेष ध्यान देगी। में दिया। १९९२सपी से इसमें स्त्री-समाज भी स्थापित १९१० ईसपी तक इस सफर में हिन्दी पौर हुआ । राय न्यासाप्रसाद साहप की धर्मपती बैंगला के दरजे पृथक् पृथक पो रहे । १ मकोवर और उनकी पुत्र-वधुओं ने पड़ी उमङ्ग के साथ इस १९१० ईस्पी से घीफ इन्सपेक्टर्स के प्राक्षा- समा का काम किया। अपवाद मुरारीलाल जी की नुसार मंगला के दरसे महाकाली पाठशाला में मिला धर्मपत्नी सथा उनकी पुत्री विप्पा पार पण्डित दिये गये पार 'सस पाठशामा की हिन्दी पढ़ने गोकर्यनाथजी मिश्र की माता तथा धर्मपक्षी इस पाली कम्यायें, इस पाठशाला में भा गई। उस समाज के मुख्य प्रा है।