पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२०६

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संख्या २] हर्ट स्पेन्सर की प्रप्रेय-मीमांसा । १२३ ज्ञान होना असम्भव है पैसे ही प्रकृति का जानना की इस चाल को ध्यान में रख कर देखा जाय तो भी असम्भय है। प्रति के रूप प्रादि के पर्सन से कप्तान हजार मील फी घण्टे के हिसाय से पूर्व को सम्पन्ध रम्मने पाले मितने मत है सब में एक म जा रहा है। पृथिवी अपनी कक्षा (Orbit) पर भी एक पोप है। इस लिए प्रति भी प्रमेय है। ६८,००० मील फी घप्टे के हिसाब से चलती है। यदि इस चाल को ध्यान में रख कर ऐसा जाय तो गति (MOTION) कसान ६७,००० मील की घण्टे के हिसाब से पूर्व अम किसी यस्तु पर ठोकर मार कर चलाते है को मा रहा है। यह बात मन्याह-काल के समय सप यह चलती है और उस तरफ़ घलती हुई को लक्ष्य करफे कही गई है। इसने पर भी प्रमी दिखाई देती है जिस तरफ यह चलाई गई थी। ठीक चाल मालूम महीं हुई, पौर म ठीक दिशा ही उसके चलने में, पार उस निर्दिष्ट दिशा की पोर मालूम हुई। यदि पृथिषी की कक्षा पाली चाल के चाटने में, इन दोमी पातो में कोई सन्देह नहीं साप, सूर्यप-मणल (Solar Systern) की पहचाळ रहता। परन्तु पास्तय में ये दोनों ही पाते असत्य भी ध्यान में रखी जाय जिससे कि यह हरक्यूलेज है। न तो यह घाल उस पस्तु ही की होती है, नामक नक्षत्र की पोर जा रहा है, तो मालूम होगा 'पौर म यह थाल उस निर्दिए दिशा की पोर ही कि कप्तान न पूर्व ही की तरफ जा रहा है, पर म होती है। उदाहरण लीजिए- पश्चिम ही की तरफ़, किन्तु मान्ति-मण्डल कल्पना कीजिए कि किसी मध्यरेखा पर काई (Elliptic) के धरातल की तरफ मुफी हुई रेखा जहाल, पश्चिम की तरफ़ में किये, लार साले में जा रहा है। यदि सारा-मण्डलों का हाल मालूम खड़ा है। सहाज़ का कप्तान जहान के मुंह की हो पीर उमकी थाल का भी स्वयाल रखा जाय तरफ़ से पीछे की ओर अहान की छत पर रहस दो पूर्वकथित चाल में कुछ पौर मी अन्तर पर रहा है। प्रत्र बताइए साम किस तरफ आ रहा जायगा । है। उधर यही होगा कि पूर्व की तरफ। जहाज़ इस दशा में किसी चीज़ की चाल पार उस का सर उठा पार जहाज़ पश्चिम की तरफ़ चाल की विशा जो हम समझते हैं यह ठीक महीं। रयाना हुमा, पार उतनी ही चाल से घला जितमी सोपाल प्रत्यक्ष दिखाई देती है यह देखने से तो पास से कस्सम जहाज़ पर चल रहा है। बताइए ठीक मालूम होती है पर सब भी मानी जाती है, कसान किस तरफ जा रहा है। हम यह नहीं कह परन्तु ययार्य में पात कुछ और ही है। असली चाल सकते कि पूर्व की तरफ, क्योंकि फसाम को जहाज को म हम खयाल में ला सकते हैं और म समझा उसी प्यास से पश्चिम की सरफ लिये जा रहा है ही सकते हैं। इसके अतिरिक जब तक किसी जिस पास से कि यह पर्व को आरहा है। हम यह स्थान को लक्ष्य में रच कर गति का विचार नहीं भी नहीं कह सकते कि वह पश्चिम को जा रहा किया जाता तब तक गति प्रथया घाळ का चिन्तन है । जहाज के बाहर जितमी पीछे उमकी दृष्टि ही महीं हो सकता । गति का अर्थ है-स्थान-स्याग। सेतो फसाम ठहरा हुआ है, पर जो जहाज़ पर है परन्तु प्राकाश में किसी स्थान का कोई निश्चित उनका यह पलता पा मालूम होता है। अप ठिकाना नहीं । इस लिए, यहाँ स्थान-स्याग की ववाए कि कप्तान स्थिर या चल रहा है। प्रथिवी कल्पना ही नहीं हो सकती। यदि यह कहिए कि अफ्नो.धुरी के पारो तरफ.एमसीहै। यदि पृथिषी माकाश में,सी. उसकी सीमागों को लक्ष्य में रखने