पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२२

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। संख्या १] हर्ट स्पेम्सर की प्रप्रेयमीमांसा । । स्वतन्त्रता में बाधा न पावे। हां, कोई मनुप्य ऐसा देस्मा जाय तो शात होगा कि धर्म (Religion) काम न करे जिससे दूसरे की स्वतन्त्रता में रुकावट पर पिधान (Science) में दीर्घ कार से परस्पर । उत्पन्न हो अथवा दूसरे को किसी प्रकार की हानि विरोध चला पाता है। इस घिरोध की आंच | उठानी पड़े। दूसरे शब्दों में इस पात को इस तरह पूर्योक नियम द्वारा करनी चाहिए । इससे पात । कह सकते है कि पहले विचा के अनुसार होगा कि माना प्रकार के जो मत पार सम्प्रदाय | "अधीनता" (Subordination) का सम्यन्ध रामा दीर्घकाल से चले पाते हैं पार चलते रहेंगे उनमें

फीच्य से था पार नयीन विचारों के अनुसार मसा भी कुछ न कुछ सस्प का पंश अयप है। प्रत्यंफ

। की इच्मसे। सारांश यह कि राज्य प्रबन्ध में "प्रधी- मत में सस्य का ग्रंश है, परतु यह प्रसत्य के । मता" स्वीकार करना एक प्रत्यावश्यक पास हुई। प्रारम्पर में छिपा रहता है। यह फहमा ठीक नहीं i पूर्वोक्त विचार परस्पर घिरोधी अवश्य है, कि सभी मत धर्माचार्यो या पुजारियों के घलाये 1 परन्तु उनमें जो सत्यांश है यह पैसा ही है। इन दुए है पार केपल कपोट-कल्पित है । संसार के , सप विचारों का व्यापक प्राधार पधीनता है पीर समी देशो पार समी मनुष्य जातियों में धार्मिक । यह समी विचारों में, किसी न किसी रूप में, पाया घिश्यास पाप आते हैं। यदि यह पूछा जाय कि

साता है। इससे सिर मा कि प्रसस्य माने गये समीपेश पीर सभी मनुप्या में पार्मिक विश्यास

। यिचा में सस्य का अंश ही महीं रहता, किन्तु पयों पाये जाते हैं, तो इसके दो उत्तर दागे। पहला । ध्यान देने से सस्य निर्णय का मार्ग मीहात हो सकता यह कि जैसे क्षुघा, रुपा पादि इन्द्रियों के धर्म है। यह मार्ग यह है- मनुप्यों में जम्म से दी पाये जाते है पैसे दी i. एक प्रकार के जिसमे विचार हो उन सबकी पार्मिक विश्वास भी अन्म से ही उत्पन्न होते है। । पहले परस्पर तुलमा की जाय । सो विचार परस्पर- दूसरा यह कि ये घिश्यास जन्म से मदीं उत्पन्न । विरोधी होघे अलग कर दिये जायें। बाकी के होते, किन्तु विचार-कम से शनैः शनः उत्पप्र दाते + पिघारी में जो पात व्यापक ही उसे हूँद कर उसी है। हमारे पूर्यस यह मानते थे कि जैसे ईयर मे को नियम-संवा दी जाय । अर्थात् मी पंश सब मनुप्यो को इन्द्रियों के पर्म दिये पसे दी धार्मिक पिचाप में एक सा पार पटल रहे यह प्रहण पर वियास भी दिये हैं। इसी पारस मनुप्य धर्मा | लिया साय पार उसके लिए कई विशेष माम या यलम्पन करता है । यह पहले उधर का उदाहरण 1 संमा नियत कर दी जाय। जो विचार परस्पर- हुमा । यदि दूसरा उत्तर ठीक माना जाय तो ऐसे । पिरोपी है समके सस्य-निर्णय में इस नियम से पड़ी ऐसे प्रश्न उठते है--यार्मिक विश्यास फ्यों उत्पन्न १ सहायता मिलेगी । अपमे पार दूसरे पक्ष के पास विश्वास से कान मी प्रयोजन-मिसि | सिमान्ती के विचारों में भी इससे बड़ी सहायता होती है। इस सम्बन्ध में सूरम रिचार करने में मिन्टेगी। इसके द्वारा सत्य का निर्णय हो जायगा। निश्चय होता है कि पार्मिक विक्ष्यास की उत्पति इस प्रकार नियमानुसार चलने पर माल्म दो मनुष्य जाति के हित मे सम्यम्य गाती है, पार यह जायगा कि आ हमारे हर यियास पे मी सर्पथा विदयाम मनुष्य-जाति के लिए उपयोगी भी दामी सस्प महीं ६, पार विपक्षी का विश्यास या उत्तरी से यह पात स्पष्ट मान्दम दाती है कि मनुष्य मिदाम्त हैं ये भी सर्पया प्रसस्प मदी, शिन्तु सत्य साति में धार्मिक विश्पाम सदा से पला पाया है। पर प्रेश उनमें भी प्रपश्य है। ऐसे विश्वास का प्रनादर फरमा सर्पपा प्ररित है। - - -