पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२२९

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मई पुस्तक। ___...' मा पुरक वन-कुसुम श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण-पूर्वाई इस छोटी सी पुस्तक में छः कहा- (हिन्दी-मापानुपाद) . . . मरम्पपी के समान ... परि-मरमर नियाँ छापी गई हैं। कहानियों पड़ी रोचक प्रादि-कापि पाम्मीकि मुनिपीत परत हैं। कोई कोई कहानी तो ऐसी है कि पढ़ते संस्कृत में है। उसके हिन्दी भाषानुपाद भी समय हँसी पाये विना नहीं रहती। मूल्य हुए हैं। पर यह अनुयाय अपने रंग का कि केवल चार पाने है। मया है। इसमें प्रक्षाशा मनुपाद है। माणमा पार सरस है। हिन्दु मात्र रामायको धतुम सदुपदेश-संग्रह मामत है। असल में यह पुस्तक ऐसी दी है। पदने पढ़ाने घास को सब तरह का शन प्राप्त मुंशी देवीप्रसाद साहब, मुंसिफ, जोधपुर में है पर धारमा बलिष्ठ यमता। इस पूर्ण गई भाषा में एक पुस्तक नसीहानामा पनाया था। प्रादि-फाय से सेफर सुपर-कार- उसकी कद पन्जाम पार पराद के विधा-विभाग में फाण्डौ का अनुवाद है। बाकी काय उत्तरा पदुत दुई। पहफयार छापा गया। उसी मसीहत- रहेंगे । उत्तरार्य सपरदा है। यह जन्दा र मामा का यह हिन्दी अनुयादामुपदेशों के प्रपि. प्रकाशित दोगा । मन्दी मगाए। .. मुनि, पीर महारमापों में अपने रचित प्रग्यों में जो सपदेश लिपे हैं उम्ही में से हाटपाट कर इस ऐटी सी किसाप की रथमा की गई । शेपशादी का फपन है कि 'मगर भात पर भी कई उपदेशात्मफ कार डाक्टर श्री रवीन्द्रनाय टाकुर : पघन लिया हो तो मनुष्य को धादिए कि उसे अपने बनाई हुई "गीताञ्जलि" नामक मगर कान में घर है। यह पिल्युल ठीक है।पिमा उपदेश के पस्तक का संसार में कितना का मनुप्पका पारमा पवित्र धार पलिष्ट नहीं दे सकता। " इस पुस्तक मै पर अभ्याय है। उममें:४१ उप. हा यह बतलाने की जरूरत नहीं देश। उपदेश सब तरह के मनुष्यों के लिए हैं। उस पुस्तक की अनेक फरिताप थेगा उनसे सभी सखन, धर्मारमा, परोपकारी पीर पतुर गीताजलि में तया और भी कई पेगन बन सकते हैं। मून्य कंपस । र पाने। की पुस्तकों में छपी हुई है। उन्ही टाम काका की कुटिया तामों को इकट्ठा करके हमने हिन्दी अर्थ हमारे यहां से दियोमाग में बदतमी में 'गीतानि' पाया है। जो महार तित देगये । पद यात या उपन्यास है। मंगरेजी हिन्दी जानते हुए मैंगला भापा जानना में यह पुरगा पहनदी पिात R! मारतीय उनके लिए यह चयाम को पुरता माग में भी इस पनुपादों को संस्मरण है। पुरा मल्प "एक रुपया। पुण मिटमे सपा-मैनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग।