पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२३८

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      • इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तकें * * *

मात् सीतावनवास । पाठे मही विदेशी विद्वान् भी छटद्ध। संसात में जैसा दिया यह माटक हुमा है वैसा ही मार सुप्रसिद पटित पिरषद पिपासागर लिखित यह हिन्दी में लिया गया है। कारण यह कि इसे "सीतार-पनयास" नामक पुस्तक का यह हिन्दी- हिन्दी के सच कालिदास पमा समयसिंह ने अनुवाद "सीतापमयास"छप कर तैयार है। इस अनुपादित किया है। लीजिए, देखिए तो इसके पढ़ने पक्षक मै धीरामचन्द्रग्रीस गर्मयटी सीताजी के में कैसा अनुपम मामन्य पाता है। मूल्य १) परित्याग की विस्तारपूर्षक कथा पड़ी ही रोषक पीर करुणरसःमरी मापा में लिपी गई है। इसे पढ़ मुकुट । सुन कर मांगों से प्रामुमो की धारा पहने लगती यह बंगला के प्रसिय लेखक श्रीरधीन्द बापू के होर पापादय मी मोम की तरह पीभूत होगमा अपम्पास का हिन्दी अनुवाद है। भाई भाई जाता है। भूप। में परस्पर अनबन होने का परिणाम क्या होता है- गारफील्ड । इस जेटे से उपन्यास में यही पड़ो घिसक्षमता के इस पुस्तक में अमरीका के एक प्रसि प्रेसी- साथ दिखलाया गया है। इसे पढ़ कर लोग अपने रेंट "नेम्स पपरम गारफीस"का नीयनधरित " मम को पैमनस्य के दो से बचा सकते हैं। मन्य । लिखा गया है। गारफील्ड मे एक साधारण किसान युगलांगुलीय । के पर जन्म लेकर, अपमे सस्साह, साहस और संकल्प के कारण, अमरीका के प्रेसीडेट का सोय पर प्राप्त कर लिया था। भारतष के मय पुवको दोगुठिया को इस पुस्तक से पात मध्य उपदेश मिल सकता बंगला के प्रसिय उपन्यास-लेखक किम बार के माम से समी शिक्षित अम परिचित है। यहाँ के

हिन्दीभाषा की उत्पत्ति । परमोत्तम और शिक्षाजनक उपन्यास का यह सरल

हिन्दी-अनुवाद उपकर तैयार है। यह उपन्यास क्या (चा परिस महावीरप्रसादजी दिवेदी) खी, क्या पुरुष समी के पढ़ने और मनन करने यह पुस्तक हर एक हिन्दी जाननेपाळे को पढ़नी पाम्य है। मूल्य । । पाहिए। इसके पदमे से मालूम होगा कि हिन्दी , मापा की सत्पत्ति की है। पुस्तक बड़ी थोडके स्वर्णलता। । साथ लिपी गई है। हिन्दी में ऐसी पुस्तक, इमारी (रोचा और शिपायापक सामाजिक पम्यास) । राय में, प्रमी तक कहीं नहीं छपी । एक हिन्दी दी + नहीं इसमें पर भी कितनी ही हिन्दुस्तानी मापापों यहरपन्यास प्रत्येक ग्रहम को पढ़ना चाहिए । ' का विचार किया गया है। मूल्य ।। इस उपन्यास को गृहस्पाभम का सथा सखा समझना चाहिए । मंगला में इस सपन्यास की इतनी शकुन्तला नाटक । प्रतिष्ठाई है कि १९०८ तक इसके ५ संस्करण कविशिरोमणि कालिदास के माम को कोम महीं निकस युके हैं। इस उपन्यास की शिक्षा बड़े महत्त्व सामता शकुन्तला माटक, उन्हीं कयियूड़ामारी की है। हिन्दी में यह उपन्यास अनुपम । ३९१ कालिदास का रचा इमा। इस मारक पर यहीं पृष्ठ की पापी का मूल्य १) । मस्य। पुतक मित्रमे का पता-मैनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग । .