पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२४८

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. इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तकें कविता-कलाप स्त्रीशिक्षा का एक सचित्र, मया और अनूठा प्रम्य (सम्पादक पं. महावीरप्रसादजी शिवी ) सीता-चरित । इस पुस्तक में सरस्वती से प्रारम्भ करके ४६ अभी तक ऐसी पुस्तक की या भाषश्यकता प्रकार की सचित्र कवितामों का संग्रह किया गया थी जिसमें पारम्म से अन्त तक मुफ्यतया सती है। हिन्दी के प्रसिर कवि राय देवीप्रसाद पी० ए, सीता भी की अनुकरणीय जीवन-घटमानों का बी० पळ, पणित नाथूराम शहर शर्मा, पण्डित विस्तारपूर्वक पर्यन्न हो, जिसमें सीसाजी के जीयन कामताप्रसाद गुरु, बाप् मैथिलीशरण गुप्त पार की प्रत्येक घटना पर सियों के लिए लाभदायक उप- पति महावीरप्रसाद द्विवेदीजी की प्रोमस्यिनो देश दिया गया हो। इसी प्रभाव को दूर करने के मनी से लिखी गई कविसामों का यह प्रपूर्य संग्रह लिए हमने "सीता-चरित" नामक पुस्तक प्रकाशित प्रत्येक हिन्दी-मापामापी को मैगाकर पड़ना चाहिए। की है। इसमें सीताजीकी जीपनी तो विस्तार- इसमें कविष रंगीम भी है। ऐसी उत्सम सचित्र पर्यक लिली ही गई है, किन्तु साथ ही उनकी जीवन- पुस्तक का मूल्य केषल ॥) रपये। घटनामों का महाप भी विस्तार के साथ विवाया (सचित्र) गया है। यह पुस्तक अपने ढंग की निराली है भारत वर्ष की प्रत्येक नारी को यह पुस्तक अवश्य हिन्दी-कोविदरनमाला । मैंगा कर पढ़नी चाहिए । इस पुस्तक से लिया ही दो भाग महीं पुरुप भी अनेक शिक्षायें प्रहण कर सकते हैं। (पान रपामा पराप्त बी. ए. द्वारा सम्पादित ) क्योंकि इसमें कोरा सीताचरित ही नहीं है, पूरा पहले भाग में मारतेन्दु वायू हरिश्चन्द्र पौर रामचरित भी है। प्राशा है, सी-शिक्षा के प्रेमी महा- महर्षि दयानन्द सरस्थती से लेकर वर्तमाम काल शय इस पुस्तफ का प्रचार करके नियों को पातिवत तक के हिन्दी के मामी मामी चाळीस लेखकों और धर्म की शिक्षा से अलंकस करने में पूरा प्रयत्न सहायकों के सचित्र संक्षिप्त नीयन-चरित दिये गये करेंगे। है। दूसरे भाग में पषित महावीरप्रसादमी ठिवेदी पृष्ठ २३५ । काग़ज़ मोटा । सजिल्द । पर, तथा पणित माषपराप समे, पी० ए० प्रादि विद्वानों तो भी सर्वसाधारण के सुमीते के लिए मूल्य बहुस के तथा का विदुषी सियों के भीषनधरित छापे गये ही कम । केयल ।) सया रपया। है। हिन्दी में ये पुस्तके अपने रंग की प्रफैली ही ।सकूलो में ऊँधी कसामों में पढ़नेयाले छात्रों को कविता-कुसुम-माता । ये पुस्तकें पारितोपिक में देने योग्य है। प्रत्येक इस पुस्तक में विविध पिपयो से सम्बन्ध रमने हिन्दी-मापा-मापी की यह 'रनमाला' मैगाकर अपना वाली मिन्न भिन्न कवियों की रची हुई पस्यस्त ममो. कण्ठ अपत्य सुपित करना चाहिए । प्रत्येक माग हारिणी रसपती और चमत्कारिमी १.९ पितामों में ५० हाफटोन चिम दिये गये है। मूस्य प्रत्येक माग का संग्रह है । हिन्दी कवितामों का ऐसा उपादेय । का ॥) रे रुपया, एफ साय दो भागों का मूल्य संग्रह अाज तक कहों महाँ छपा । मूल्य ॥) पस ३) सीम रुपये। - - - मामे। पुस्तक मिसने का पता-मैनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग ।