पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२५०

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  • * * इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तकें * * *

बानसखा-पुस्तकमाला। न जान कर कैसे पार अन्धकार में धंसती चली या पही है सो किसी भी विचारशील से छिपा नहीं है। रियम प्रस. प्रयाग से "चारसबा-पस्तफमाला" इसी पोप के दूर करने के लिए 'मनुस्मृति', में से मामक सीरीज में जितनी किता' पाम तक उत्तम उत्सम स्लोको को छोटट कर समका सरण कमी सव हिन्दी-पाठकों के लिए, विशेष कर हिम्मी में अनुयाद लिया गया है। मूल्य 1) पालक-बालिकापी और सियों के लिए, परमाप. पोगी प्रमास्ति से पुकी है। इस 'माला' की सप पालनीतिमाला। किनायो की माण पेसी सरल-सबके समझने -नीतिविधामड़े काम की विधा है। हमारे यहाँ पाम्प-रस्त्री है कि जिस पोई पढ़े लिये बालक मी घर नीतिश बड़े प्रसिर हो गये हैं। शुक, पिदुर पड़ी भासानी से पढ़ कर समझ लेते हैं। इस 'माला' वाक्य पोर कणिक । इन्हीं के माम से धार पुस्तके में पवन सिवनी पुस्तके निकल चुकी रमका विस्पात है। शुरुमोति, विदुरमीति, पाणक्यनीति मित विषरण यान दिया जाता है।- और कणिकनीति । ये सब पुस्तक संमत में है। बालभारत-पहला भाग । हिन्मी माननेवालों के उपकार के लिए हमने इन - धारो पुस्तकों का संक्षिप्त हिन्दी-अनुवाद सपाई। 1-समें महाभारत की संक्षेप से कुल कथा मी मापा बालको पार खियो तक के समझमे ऐसी सरठ दिग्दी भाषा में लिखी गई है कि पाळक . 'मायक है । मूल्य पौर सियां तक पहफर समझ सकती है। या पासवों का परित बाळको को अवश्य पढाना पालमागवत-पहला भाग । पाहिए । मूल्य) मूल्य पार पामे । ६-लीजिए, 'श्रीमद्भागवत' की कथा भी प्रय बालभारत-दूसरा भाग । सरस हिन्दी भाषा में बन गई। यो सोग संस्कत मही सामते, केयल हिन्दी भाषा ही मानते हैं, ये भी २-समें महाभारत से हट कर बीसियों ऐसी अब धीमद्भागवत की किरस-मरी कथापी का रूपायें लिखी गई किशिमको पढ़करपालक प्रष्धी स्वाद बन सकते है। इस 'वासमागवत' में मामला. शिक्षा ग्रहण कर समसेर कथा के अन्त में गषत की कथापो का सार लिया गया है। यानुरूप शिक्षा भी दी गई है। मूभ्य बही) इसकी कथायें बनी ऐवक, पदी शिक्षादायक पार पानरामायण-सातो कायर । मक्ति रस से भरी हुई है। हर एक हिन्दी-प्रेमी हिन्दू -समें रामायण की कुल कथा बदी सीधी को इस पुस्तक की एक एक कापी जर परीदनी मापा में लिमी गई है। इसकी भाषा की सरलना में पारिए । मूल्य । पाने इससे अधिक पौर क्या प्रमाण दें कि गधर्ममेट में . पालभागवत दुसरा भाग। इस पुस्तक को सिविलियम लोगों के पढ़ने के लिए अर्थात् नियत कर दिया है। भारतवासियों को यह पुस्तक भाकप्यमाना। पवश्य पढ़नी चाहिए । मुन्य !" +-भीलप्स के प्रेमियों को यह पालमागवत बालमनुस्मृति । का दूसरा भाग मार पड़ना चाहिए । समै, -पार फल प्राप-सम्मान अपमी प्राचीन भोमनागपत में यर्मित श्रीकृष्ण भगवान की अनेक मार्मिक, सामाजिक परि गमनैतिक रीति-रस्मो को ठीलामो की कथा लिभी गई। मूल्य केषक, पुस्तक मिळेने का पता-मैनेजर, इंडियन प्रेस, प्रयाग ।