पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२६

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संक्या !] हर्ट स्पेन्सर की प्रमेय मीमांसा। - के अनुमानों तक पहुँचाते हैं जिनका अनुमान पृधियी भी गोल है सम भापका विचार अनुमान से सिम होना सो सम्मय है, पर उनका सिम्तन- ही अनुमान रह गया । पृथिवी का गोला ययार्य में उनका विशेप मान-असम्भय है। अर्थात् घे फैसे है, कैसा है, इस बात का स्पए मान प्रापफी म हुमा । यह ठीक ठीक नहीं जाना जा सकता । एफ उदा. क्योंकि यद इसनो बड़ी वस्तु है कि यदि उसका हरण लीजिए- प्रहण नहीं कर सकती। जितना स्पट शान नारी देयदत्त नाम का एक मनुष्य है। उससे भापकी का था उतना पृथ्यी के गोले का कदापि नहीं हो मिपता है। भापको देपदस का पूरा परिचय है। सफ्सा । यह कल्पमा गोला के सस्त से ही कर देयच का फुटुम्ब मी है। प्रापका जितमा परिचय ही गई है। इसका प्राधार एफ मात्र गोलापन है। पदस से है उतना उसके कुटुम्य से नहीं । उससे ऐसे मनुमाम सातिक फल्पनायें (Symbolic भी कम देयदत्त के मतानुयायियों से है। उससे भी Conceptions) कहलाते हैं। प्रर्धार ये पे पल्पनायें - कम देघदच के देशयासों से । उससे भी कम है जो किसी सत से होती है पार मिन घीमों वेयदत्त की आनि से । उससे भी कम मनुष्य जाति से उनका सम्यग्य है उनका स्पष्ट मान नहीं होता। - से, जिसमें देयदस पैदा हुआ है। उससे भी फम उस साङ्केतिक कल्पना में दो प्रकार की भूलें दो माती प्राणि समुदाय मे जिसमें मनुष्य, पशु, पसी इत्यादि हैं। एक तो यह कि मप सेोटी यस्तु देय कर बड़ी - सभी शामिल है। इसी तरह ज्यो ज्यो परिचय- से बड़ी पस्तु का अनुमान किया जाता है तष परिधि घटती गई स्यों स्यों इन चीज़ों का झाम भी गणना में कहाँ म कहाँ ऐसी भून हा जाती है जिसे - कम होता गया । अनुमान से प्राप जीवधारियों की पका ही नहीं सकते। दूसरे यह कि जो घीजें ___घेणी तक तो पहुँच गये, परन्तु उनका स्पष्ट मान सातिक पम्पमा से अनुमित होती है ये यथार्थ कुछ भी न हुमा। दूसरे शब्दों में यह कहना में पसी महीं होती जैसी कल्पना फी जाती है। चाहिए कि जितना स्पष्ट मान पापको देवदत्त फा पंसी कल्पनामों का स्लोग पिना आंच ही सय ६ उतना उसके कुटुम्प पालो का महाँ, पार जितना मान लेते हैं। इसी कारण सातिर फल्सनायें कुटुम्प याले का है उतना उसकी जाति का मही। याहुधा शशरण की अनुरूपसा रपती ये को- इसी तरद जैसे जैसे प्राप प्रागे पढ़ते गये पैसे दी सला मात्र होती है। यपाथ में उनमें कुछ भी पैसे मान कम होता गया, यहाँ तक कि जम कंपल सत्यता महीं रहती। . मीयधारिया ही का पिचार रह गया तम स्पए पान अधर्म-विषयक विचारों में मानसिक पनयनापी कुछ भी न रहा । केयल सप्त से ही इस कल्पना के प्रयोग का हाल देसिए । बप कोई पामुस घटना की उत्पत्ति हुई। सहेत यह कि जिनमें जीपये देती है-से मदामारी, भतिगृष्टि, भूपा सब एक हैं। इसके अतिरितः पार किमी गुण इस्पादि-तम प्रसम्प माली मनुप्य तो उपत पिरोष का मान प्रापरम पुमा। फारम फिपी देय या देपी का काप मान सेते। इसी तरह, पपमा फीलिए कि पापने एक मरे हुए मनुष्यों को स्वप्न में देगने में पयाल मारङ्गी देगी, तो उसके रुप फा पार उसके दूसरे साकि भूत-प्रेन यानि का भी प्रगियान गुणों का भी सपएं पान तो पापको दो गया । परन्तु भूत-प्रेती में ओ परेमाने आ उनही नि भी मारपी के सहा प्रन्यान्य गोल चीजों का विचार बदुत अधिक पगना की जानी ज्योग मनुष्य करतं करते सम पापस अनुमाम तक पहुँति सम्प पर मुशिक्षित न जाते ६ स्पो पे मत.