पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२७

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सरस्वती। प्रेती की जगह देवी-देयता को मानने लगते है। गया कि यह पस्नु कायरों से पर्समान है, परन्तु पर शानः शनैः ये इस अनुमान तक पहुंच जाते है कि क्या यस्नु, यह तो समझ ही में म पाया ! म समस्त संसार में कई प्रहश्य शकि अयश्य है। यस्तु का भान इस ममय महाँ दो मकना उसा पदी इन घटनापी का फारम है। यही संसार को पिपय में बंद यह मालूम भी हो जाय किया। उत्पन करने पाती है। यह अनुमान कंपल साडू. , पदले भी यर्नमान थी, तो इतने से उसकी मार तिक कल्पना है। यह स्पष्ट मान का पिपय नहीं। प्राप्ति में कोई सहायमा महीं मिलती। रहस्य में संसार की उत्पत्ति के विषय में सीन कल्पनायें कातैमा गूढ़ पार गम्भीर बना रहता है। इसी तरा, मुस्प है- . .... .. यदि संमार मनादि मान लिया जाय तास मान्से - (१) संसार की सता.समार दी ये है-प्रर्यात् का यह अर्थ वागा कि संसार अनन्त पाल में यह पपने भाप दी विधमान है पार स्वाधीन ६ (जिस चिम्मन मही हो सकता) घाला पाता है। (The Univerciatrexistent) परन्नु संसार है क्या,यस्तु ! म मक्षा उत्सर (२) संसार अपने आप ही उत्पन्न दुप्रा ६ भीम मिया इसलिए मास्तिगी का यह मतही (The Uniterroriself-reatel) माही कि संसार म्यप ससा यासा अर्थात् अनादि है। (A) मसार की किसी पन्य शक्ति ने उम्पन्न किया है। प्रर्थाम् पद अपने भाप उत्पन्न नहीं हुआ। दुसरो कल्पना । । उसे किसी पार शक्ति ने रचा--(The liniser-e

दुमरी कम्पना यह है कि मंमार अपने पापही

incretellirnu extrrial nuenes) - इम फल्सनापों पर मम पिचार लिया जाताई। उत्पप दुधाई । गर्मी के प्रभाय में पानी में माफ उरती है। माफ़ ऊपर पद पर पादमी कप में . पहली कल्पना.! . . . हो जाती है। ऐसी घटना देख कर मानिस इस कराना पा पर मनमम कि संग्गर की फपना होती है कि ममा भी इसी प्रापर पर सत्ता संमार ही में किसी मरी' सत्ता में गया है। मंमार सायं उपप गुमाई, म पनामा उमका मम्पन्ध मह 1 इमरे शादों में पास सरद पर यटम मा कि उम्पप दोन पास मंसार:- यह साकि यह मा पनादिमा काई पना-पिया का शतिः पपप ही गुम गाणे पारग मा । अनादि बनाना ही गईगील पिण्य पिगमान धी । म दगा में कई पार पाप में गाद मिलना गरग पिगार गिजाप रात उपस्थित रण सिपम म गुमनासार* सारपान कमी हीसगरमा प्रमादिमागमा रूप में पाने की मापदयामा परी । गद फागनी ममग्न भूतपयल की कन्यना करना भी पम्मनाकी आग परदे पार तिः प्रया, पापदप ऐमा रमझना ममम्मप। परि (IPotential) पी. प्रपा प्रपद म संधी. पाच ई पशुपमादि माम भी मी काय, तो संपार से हो पा भी अपए मामना गदेगा कि त्या! रमाता दिया जा पाता। या सिई पस्नु पी पी पस्नु योगा गर रममा भर की मादम दी माहीत ना। मन, (मकर), HIT मा यी पाप पर पनामा नीजिए.नि. कां पाग समय परमान किएनपी (Suthing) प. पा . एक मि पपग पर पर्व पाने भी स्पथी. मी गोपारामागमा पोगा- पर पतमाम पीसना में पहनामाम्हमा गुम्पमा पंगा हिमाचल Tranारा