पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२९९

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सरस्यती। (३) एफ घस्तु की महाता दुसरी परतु मे अब तक यह म मान्दम होमिय पार जानना-प्रद जगी यह पम्नु पसी यह भी है। उसका पान भी माहीही सामा गाणे पहरे पक्षण पर यान देने में मादम गा Abante) कदापिय मी म मा कि अपाम एक गम्नु को परी गम्मु मे भिष मान भी पदापि माहीही मागील पमात मदम यस्तु की सीमा बाँधने हैं। माहर उनका मान करना माग मर्यास् जिस पम्नु कदम जामना थाने मी मान यादर ६. योशिमग ही nिe सीमा पर मानी, पार उम मामा- निर्धारत अमर मे समाप मदी, पारवान पर मैदी उमका पान होला । यदि कोई यम्मु अनन्त पम्मुगाहाता जिनको मे मre ६ मा उपती सीमा योगना परम्मय है। हम इस लिए मम्पूर्ण का नाम य म ' फारम उमका भान हमा भी अपमाय । सम्मप है। सान का सगसग्य मान्य-सम्पापता है। ऊपर, पान-माम पीदी मातीत पार . इस पर भी विचार पर गिप। या हम पहले ही मुभार्धात् मित्रता र नोय-गायन पार पाहिमाम में माता पार प्रेयदा पम्तये का। पप मामरी पान महानाकामिय.. हगी है। मंप पर माता पिना मान भी माममम से पनपदी महा मालमी दो समा। माम-मिया में माता पार मेय मिसे गाय सर्ग पातु मे गुप में नि रहने ६ पार पामगर गाद मान्य है। मां , किरतु यह भी. मारमा पादों में यही मात इस तरह कही जा गरी . -.. ६.: