पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३०

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संख्या १] . दर्य, स्पेन्सर की प्रमेयमीमांसा । ऐसा जिससे कोई चीज़ उत्पन्न न हो। यह परस्पर- कि जैसे कोई कारीगर मेज़,कुर्ला प्रादि सामान विरोध हो गया । इस लिए यह कल्पना निरर्थक है। बनाता है धैसे ही ईश्यर ने भी पृथिवी पार पाकाश इसके अतिरिफ यह जानना भी प्रायश्यक है कि ऐसा प्रादि की रचना की है। यह मत पड़े पड़े विदामों काम सा कारण उपस्थित होगया जिससे प्रत्यक शक्ति पार पपिरतो का है। परन्तु सूक्ष्म हष्टि से देखा को ष्यक रूप में होने की प्रायश्यकसा पदरी ऐसा कोई जाय तो इसमें भी पदी दोप है जो पूर्वोक्त दोनों कारण तो पताया नहीं जा सकता। मतपष यह सिर कल्पना में है। यह फपना किस कारीगर मेज- हुया कि प्रत्यक शक्ति में बिना कारण ही पिकार कुसों यनाता है पैसे दी ईयर भी पृथ्वी, आकाश उत्पन्न हो गया पार यह अय्यक से व्यक्त हो गई। प्रादि वनाता है फेयल उपमा है-उनका कथन-मात्र यह पाठ मानी हुई है कि विकार (Chaure) है, पार कुछ महीं। लोहा-लकड़ी प्रादि, जिससे यिना कारण के मही होता । इस दशा में पूर्वक कारीगर मेज़-कुर्सी पनाता है, उसकी उत्पन की विचार का प्राधार सस्य नहीं । यह मलाप माय है। ई महाँ होती । यद सष सामग्री उसके सामने यह केवल सस है। पार, सन्त में यथार्थता घर्तमान होती है। उसे घर केपल मेज़-फुर्सी के रूप की ? यदि यह भी मान लिया साय कि यह शक्ति में बदल देता है। परन्तु ईयर के पारा पृथ्वी, पहले प्रध्यक्त थी, फिर व्यक्त हुई, तो फिर भी मामाश भादि की रचना के विषय में विचार किया यह मम उठता है कि यह प्रष्पक शक्ति कहां से पाई। जाय तो यह प्रश्न उपस्थित होता है कि पद ग्यत संसार का प्रादि-कारण घताना पार अध्यक सामप्री, जिससे पृथ्ची-पाफाश मादि पने ६, कहाँ से शक्ति का प्रावि-कारण बताना, एक ही बात है। प्राई । उत्तर में यही कहना पड़ेगा कि यह पहले से सस्ट तो पूर्यपत् पना ही रहा । यदि प्रय्यक शक्ति ही मौजूद थी। यदि पहले से मौजूद थी तो फिर का कारमा पूछा जाय तो यही कहना पऐगा कि भी यह प्रश्न उपस्थित होता है कि यह कहाँ मपाई। उसका मी फारण काई पार पक्त शकिपीर, यदि कहिए कि यह शून्य से उत्पन तापमा उसका कारप पूछा माय तो फाई पार शक्ति बताई कदापि दो ही नहीं सकता । क्योंकि आनन्य। मायगी । इस प्रकार एक दूसरे का कारण पाप उससे कोई चीज कमी उत्पन्न नहीं हो सकती। अनन्त काल तक पत्ताने रहिए, पर समाधान न इसके साथ ही यह भी प्रश्न उपस्थित होता है कि होगा। यह प्रश्न ज्यो का स्यों बना रांगा कि संसार जिस महदाफाश में संसार फी मप घी स्पिन है का प्रादि-कारण क्या है? यह कहाँ से पाया । क्या पहले अनन्त शून्य था! यह कल्पना उन टोगों की है आ यह कहते हैं । और यदि यह कदा आय कि महदाफाश भी उसी सरह कि संसार में जो कुछ है यह किसी विशेष शति । उत्पन्न हुआ है जिस मरद कि प्ररमि उत्पन्न दुई की इच्छा से ही अपने पाप उत्पन्न दुपा है। प्रोस् । तो यह प्रम किया जा सकता कि क्या पहले मह- पद मदती शतिः स्वयमय संसार के रूप में प्रकट पा दाफाश न था । परन्तु पेमी फरगना करना युद्धि के दो गरी मोगरम फसमा के कायल है पे पादर की यात। यदि मददाफाश का पदले म यिट्यपरिणामयादी कहलाते हैं। दोना युरि मदा प्रदण कर सपती तो मददाकारा का उत्पन्न होना भी उसी शामिक पादर.६।। तीसरी कल्पना । जरा देर के लिए मान मोमिए कि यह मप टीर. यह पारसना ईयरपादियां की है। ये फदते हैं ६.अथपा पम पेमे ममदी नदी रियासर