पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३०४

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संम्या ३] प्रभपूर्ण के मन्दिर में। १७२ हैं। इस लिए इतना तो प्रयश्य मालूम सा है कि इस समय भी यह उस मूर्ति की उपासमा कर रही कोई मावात्मक प्रहप-शकि प्रवप है, परन्तु वह थी । कमसा को अपनी इस दुर्वलता पर लखा होती क्या है पार कैसी है, यह नहीं हात हो सकता। थी। यह यो से इसे दूर करने के लिए प्रार्थना मष यह सिर हो गया कि धर्म के मापार करती थी। उसे विश्वास था कि यह अपनी दुर्व- प्रदेय है, पर यह भी सिद हो गया कि विधान के सता कुछ दिनों में अवश्य दूर कर सकेंगी। पापार मी पाहय है, तब धर्म पार विहान का अब कमला फल तोड़ चुकी सब उसे ऐसा मेल होने में बाधा ही क्या पही। दोनों के प्राधार जान पड़ा कि कोई उसके पीछे खड़ा है। उसने प्रमेय है। इसी लिए अम्सिम पिचार से दोनों पक तुरन्त ही लीट कर देखा । यह कई पार म था। है पर एक ही सा गौरव रखते हैं। इससे यह उसका प्याकित चित्र ही था। कमला को अपनी सिशाम्त निकला कि दोन पस पालो को प्रीति- पोर नेप किये देख यह कहने लगा- पूर्वक रहना चाहिए । मापस में झगड़ा न करना "कमला, मुझे समा करो। में लौट प्राण है। चाहिए। मुझ से रहा नहीं गया । मैं सब कहता है, प्रत्र में फमोमल, पम० ए० तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। तुम्ही मेरे जीपम की भाशा शे । कमला, मुझे निराश मत करो, सदा के लिए अन्धकार में मत फेंको। तुम संसार में अन्नपूर्णा के मन्दिर में। रह कर भी भगषटी की उपासना कर सकती हो। सब पूणे तो सबी उपासना संसार में पहले से ही मला अभपूर्ण मन्दिर में परि- हासो है।" ४ चारिफा होकर रहसो थी । यह इतना कह कर सुप हो गया और कमला र सन्म मर कुमारी यह कर पेयी की पोर पिपादपर्ण मेवों से देखने लगा। की सेमा करना ही उसका प्रत कमला मे कम्पित स्वर से उत्तर दिया- था । १३ वर्ष की अवस्था में "कुमार, मुझे प्रभागिनी मत पनाती। माता की कमला ने संसार से अपना बन्धन तोड़ कर जग- गोद से मुझे मत हटायो। मुझे भूल मामा । मैं बननी की गोद में माधय लिया था। ६ वर्ष तक जानती है, मैं स्वयं मुम्हें महीं भूल सकी है। पर उसने संसार की पासनापो को परदालत करके तुम मुझे भूम जाने की घेष्टा करो।" अपना मत पाटन किया। क्षण भर भी उसका मन कुमारसिंह ने प्रस्यन्त निराश होकर कहा- विचलित नहीं हुमा । किन्तु प्रास न आने उसफा "फमटा, मैं तुम्हें कमी नहीं भूट सकता । पर क्यायो घम्बळ हो रहा था। तुम्हारा अनुरोध है, इसलिए सुम्हें मूल जाने की सन्या हो गई थी। कममा मन्दिर के उद्यान घेरा करूंगा। प्राय रहते नुम्हें भूसमा मेरे लिए में देषी की पूजा के लिए फल तर ही थी । पर असम्भय है। दे, प्राण घले आने पर सुम्हें उसकी दृष्टि फलों की चोर म थी। उसके इफ- मूलता है कि नहीं। में जाता है, सदा के लिए फ्टस पर किसी का चित्र प्राप्त हो गया था, जिसे आता हूँ। अगदीवर तुम्हारा कल्याण करे।" एजार घेरा करने पर भी यह इटा नहीं सकी थी। इसमा कह कर कुमारसिंह जाने लगे। तब उसकी हटि सदा उस विष की पोर रहती थी। कमठा मे सीय स्वर से पुकार कर कहा-