पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३११

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सरस्वती। [माग १७ । इस कारण उनके दुराधरणों का पता चलाना का.पार्थिक भून्य लाम के पहले की कही माणे कठिन हो जाता है। यदि किसी तरह पता यह भी बना देता। आता है वो गरोड्यन्दी के फारम जमादार किसी कोर्ट के समय में हमने पूसरा दोप मारमान, कर्मचारी को देने में असमर्थ हो जाता है। बागात पर मकानास का सुमन्य महान्य पाप । यदि पदाधिस् कोई दुराचारी फार्मचारी काम है। परन्तु इससे पत दी कम हानि दी मी दिया गया तो मिस वामद की पालत कोर्ट के प्रबन्ध में सडामे पाले माग विशेर करके : पद भरती दुपा था पर उसे फिर भी उसी या पटवारी होते है। जमीदारों धार पर प्रम्य रिसी रियासत में जगह दिसा देती है। परि- माने में अधिक फलीभूत नहीं हो सका . याम यह होता है कि ऐसे दमा का उस पर कुए प्रबन्ध शेमे के कारण पटपारी फर शर्स भी रहते भी ममाघ मही पदसा। है। घर कोर्ट प्राय पाईस अपने मन पर इन सब पात से हमारा यह मतहर कदापि मुकदमेबाजी म बढ़ने देने के लिए कड़ी पर महीं कि फिसी मायेट रियासत में कोई प्रम रखती है। उधर मनुचित दान मांगने पार सगै कर्मचारी ही नहीं, अथवा यह कि कोर्ट के सा का डफदेने में छपमता न करने से भी मुकदमेशा : नाकर एक से युविमान पार ईमानदार है। नहीं। पट जाती है। परिणाम यह होता है । परम्नु यदि दो पेसी समपस रियासतों का परस्पर समय में मुहदमो की सन्या भास फम माती : मुकापला किया जाय जिनमें से एक कोर्ट के इस्त- है। इससे यह हानि पुल भारी महों होती। जाम में दो पार दूसरों उसके याहर, तो अन्तर माग सिसी Rयामत में हो ही तिने। साफ दिखाई पड़ेगा। हमाय मयामम किसी पर्म- पार, मालिक को कम होने पर प्राइवेट पासो . चारो की निन्दा से भी नहीं। हम फेयर पोर्ट में भी ठमकी दशा कुछ भी नहीं रहती। मग, पार प्राइवेट रियासत के प्रध-सम्यम्धी सर्च की जैसा कि हम कद भाये, शोफ की ।। समालोचना के द्वारा पह सामा चाहते है कि उसके सुपरम्प का सम्मा मानिक पर ठी पार पड़ी तनायाह यासे कर्मचारी रमने का अपहम्पित रहता है।हां, मनात की दुईण असर रियासत पर क्या पड़ता है। माइपेट रियासते पार्टीको प्रश्प कर होता धीर रियासत की हार, पदि प्रपो कर्मचारी रसमा चाहेंगी तो कयामत भी पहुँचती है। कभी कमी ना मानात की दास उन्हे कोर्ट से भी अधिक सर्म करमा देगा। ... तमी दुरी हो जाती है कि ये मायः गरमे हर