पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

संख्या।] हिन्दुस्तान की पद-मापा पर हिन्दी । - --में उपबा, किससे क्या माता? म करेंगे। यह बात उनकी समझ में ही नहीं मा किताच पद में मद रहा। सकती कि हम अपनी माव-मापा की उमति प्रा भूता से में रख गगन में कर दूसरी मापा की उन्नति क्यों करें। पौर यदि गमा पे मेरे मन में। इस प्राम्दोलन का यह उद्देश है कि हिन्दुस्तान के -मिटा पाई-पन इससे मेरा जो लोग अंगरेजी नहीं जामते ये हिम्दी पढ़ कर एक मुझे मामा । दूसरे से बात चीत करने का सुभीता प्राप्त करने, तो मे कमाया पर- तो इसके लिए किसी भान्दोलन की प्रायश्यकत मौका क्या काम पहा पर । महीं है, क्योंकि लोग परिस्थिति के अनुसार इस -~-2 कर मुझे पैर का मरका, पवन-रेव ने मीचे पटका। मापा का पोरा बहुत शान प्रापही कर लेते हैं। पा पड़ा पर पपाता इस लेख में हम इस विषय पर विचार नहीं अपने पाप पुठा याताई। करते कि मारतयर्प की रा-मापा होने के पोम्प मैमिनीशरण गुप्त । हिन्दी है प्रथषा इसकी प्रतियोगिनी उ, क्योंकि इस बात का विचार कई स्थानो में, कई हरियो से. पार को युक्तियों के द्वारा, हो चुका पीर सब हिन्दुस्तान की राष्ट्र-भाषा पातौ का सार यही निकला है कि हिन्दी ही पट- और हिन्दी। माषा होने की पाम्यता रमती है। हमें केवल यह विचार करना है कि राष्ट्र-भाषा की पावश्यकता क्यों PRADE गमग पन्द्रह पर्व से हम लोग यह है पार हिन्दी किम किन उपायों से राम-भाग हो P E सम हेकि हिन्दुस्तान में पीय सकती है। MISों के लिए एक राष्ट्र-भापा की राए-भाषा का मुख्य उरक्षा. इमारी समझ में, MORE प्रापश्यकता है पर यह साधम यह हो सकता है कि हिन्दुस्तान के मित्र मिल प्रदेशों बनने के योग्य केयल हिन्दी ही के लोग इसके द्वारा उन पात को आने जिनका है। समारो और समाओं में इस विषय के मन्तव्य मानना उन्हें प्राषश्यक है पीर जिन्हें थे मैंगरेजी म पास होते हैं, प्याफ्यामों में इस पर प्रमाण दिये जाते मानने के कारण महीं समझ सकते । हम मैंगरेजी ६ पौर, समाचार-पों में इसकी समालोचनाय का नाम इस लिए लेते कि हिन्दुस्तान में प्राज होती है। तो भी इन सब बातों का प्रमिप्राय क्या है, कम यही पर-मापा हो रही है। पर इस भाषा से सो ठीक ठीक समझ में नहीं पाता। कैयद थोड़े ही लोगों का काम निकलता है। किसानों ___ यदि इस पान्दोम का यह उद्देश है कि चारों और दुकानदारों की बात मामे दीजिए, इस देश में माम के लोग देश की एक माचीन भापा को पद ऐसे भी कई लोग हैं जो मैंगरेजी म जान कर भी कर उसकी उन्नति करें तो यह पाप्त प्रसम्मपदी राष्ट्रीय गहन यिपयो पर अपनी सम्मति दे सकते हैं अपेििक आ सोग हिन्दी के सहारे अपमा पेट पालते पार जिमके मत का प्रभाव सर्व-साधारय पर पाता है यही जप अपनी माव-मापा के सामने इसे पढ़ने है। ऐसे लोग अपनी भगरेजी-हीनता के कारण गीय की परया महा करते, तय फिर जिन लोगों का इसमें समायों में आते ही नहीं पार यदि योग से पहुंध कुछ भी स्यार्य नहीं थे ऐसी अनुदारता का काम क्यों जाते हैं तो मूर्तियत् मीन-पारण किये ठे पदों