पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३२३

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सरस्वती। - सरल मनाना है । इम मिण्या सादृश्य का कारण “गामिन" फेयलगा मावि पानिए पहार मी मनुप्य मात्र को व्यर्थ परिश्रम से अपने का यही किया जाता है। संस्थत में "दय" रहिम स्मामाषिक मुफाय है। है, किन्तु उसके अपम्रए रूप "दिया" ग्रन प्रम तक हमने केपल मापा के व्याकरण सम्बन्धी फेयल हिम्मत है.जाय का एक गुप्त मारो। अपभ्रश पर विचार किया । अब हम भाषा में संसत में "खेटफ" का पर्व मेयक है. किम्तु बम । वस्तुपों के नाम किस मियम पर पस्ने जाते हैं पार अपनंश हिन्दी-शप"पेला" का प्रर्य पर सिका। उमके अपर्मश हो माने पर अपनए रूप पया अर्थ इसके विपरीत एक प्रणाली ऐसी भी है जिससे विदा प्रकट करते है दम पर पिचार करेंगे । यस्मयों के पायक शम सामान्यषाधक बना लिये माने पास माम पिना किसी नियम के नहीं रम लिये जाते। सरद का "गयेप" पातु है, जिसका र उनके नाम सुनने में मनुष्यस्येप्रचार से काम महाँ में "गा की दमा" था । किन्तु पाद काम लेता। यह प्रयदय किसी म किसी मियम का पालन मई कंपल " ना" हो गया। कमी कमी या करता है। पहुधा यस्तुओं के माम उस गुम्प के क्त- शय के दो प्रपमए रुप यम आते हैं पर दोनों लाने याने होते हैं जो उनमें स्वास तौर पर पाया भिन्न भिन्न प्रर्य होते हैं । इस सह मस्तराम जाता है। उदाहरण के लिए "प्यो" उसे कहते "वृद" के दो प्रपनप रूप वमते है-पर"st. है ओ पिस्तीर्म हो, "भानु"यह मा प्रकाशमान हो, पर इसरा "म" म दोनों के अपमा "उदम्यान्" यह है जिसमें सल हो, पार "पित" मित्र है। यह आ रक्षा करे। किन्तु माप देख सकते हैं कि पक पार लिमित्र पात हम मा पर पे नाम पस्मों के निर्याप पार न्याय-सम्मत लक्षण परिपर्सन के सम्पन्ध में देखते हैं। यह पातम माहीं है, क्योंकि हम सब मामी में प्रनियाप्ति का शपों का कम प्रम से माप हाना है। दोप वर्तमान है। केपल “प्रभ्यी" ही विस्तीर्ण नहीं मनुष्यों की माम-वारिक धार समयतापतो माती : द, पल "सूर्य"दी प्रकाशमाम महा है पार केपल भये मये विचार और नये नये भाय मनुप्पीकर "पिन्' दी रक्षा करनेवासा मही है। किन्तु, तप में उदय होते जाते पार पुगमे निमा प' मी, इम पस्तुमा में 4 गुप प्रपामतया पिचमाम है। दर क्षत आते हैं। जशप के द्वारा ये पे विध इसी कारण ये नाम फेवल इन पस्सुमों के पायक प्रकट किये जाते FAR उम मये दिमागमा समसे जाते हैं। इस तरह मोसाद पारसय में करने के लिए मये ये वाण पुष । मामास्पयाराकई यह पिशेरपायक पर गया। यह पुराम पर दोबाई। पदममय मेत क्रम केवल नए मामी का अधिकार करने में ही हिन्दी भाषा में जा परियन एप मम: मही, शिन्तु प्रचलित मामी के अर्थ को मात की पूरी पुपिटरती है। मापा काल में परम में भी सदा काम करता है। यहां पर हम पुरा के मम मम ममाप दाम के पार भी धारमा उदादरम ऐमे देते हैं जिमसे पाठको का पता कभी जब राजनैतिक या धार्मिक मान में लगेगा कि प्रबलित मामी के सापित कर भाग को अधिक महश प्रामामा जिस तरद प्रम्य पस्तुणे के पायी गये । मस्त. सेगद म मा मे लिये जाने पर में गर्मिती" शप्प.पा -"पदमी जो कर मयेशों का पानसरपुपमा गर्मयती दा" नितु, हिन्दी में उस अपनट कप को निकालना पड़ता है। उदाहर