पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/३४

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'संफ्या १] हर्ट स्पेन्सर की प्रमेय मीमांसा । 'सीमानों के बाहर जो कुछ है यह अनन्त (Infinite) करने योग्य नहीं । क्योकि मनम्तता, सम्पूर्णता पार है तो इस अनन्त पंश को प्रावि-कारण के पाहर स्याधीनता के लक्षणं मे युक्त प्रावि-कारण का कदापि ,मानना होगा। ऐसा मानने से फाय-कारण के सम्न्ध शान नहीं दी सफ्ता । उसकी चर्या करना फेवल का नियम ही व्यर्थ हो जायगा, क्योंकि यदि अनन्त साकृतिक कल्पना है, पार कुछ नहीं। यिना कारण के है सो सान्त का कारण मानना . ममतो (१) कारण (Chue), (२) अनम्त सर्वथा पेकार है । इस दशा में प्रादि-कारण का (Infinito), (३) पार सम्पूर्ण (Alrolute)-न लक्षण सान्त या परिमित महाँ हो सकता । यदि यह सीन शप्दों पर विचार कीजिए । यदि ये सीनी शब्द परिमित महीं तो अयश्य ही अपरिमिठ (Unlimitel) एक ही पस्तु फे सूचक है सो परस्पर विरोधी है। या अनन्त (Infinite) है। प्रतएप प्रादि-कारण जो सम्पर्य है यह किसी का कारण महीं हो सस्ता। अनन्त ही सिर होता है, प्रतयाला अर्थात् इसलिए प्रादिकारण सम्पूर्ण महीं, क्योंकि कारण तो सान्त महीं। कार्य के सम्मन्यसे ही होताई-कार्य से कारण.कारण पादि-कारस का यह भी सक्षम होना चाहिए से कार्य सम्पूर्ण का अर्थ यह है कि उसका सम्पग्य कि यह पार किसी कारण का प्राधित महीं, क्योंकि किसी से न हो । यदि यह कहा जाय कि मादि-यारण यदि यह पार किसी कारण का प्राधित है तो यही पहले अपने रूप में सम्पूर्ण था, परन्तु पीछे कारण । मामयी-भूत कारण मुमय कारण हुमा । इस कारण हो गया, तो इस युति में यह दीप पासा है कि यह अयश्य ही मानमा पड़ेगा कि प्रादि-कारण भादि-कारम प्रमन्त नही । पयोकि जो अनन्त है स्वाधीन (Independent) है। यदि यह स्वाधीन उसका रूपान्तर नहीं होता। अर्थात् सोधील पहले है तो इसका यह प्रर्य हुआ कि उसके सिधा पार मही धी यह पीछे भी मही दामपती । यादे सम्पूर्ण कोई चीज महीं है। केवल यही विधमान है। उसको फा कारम हाना मान लिया आय तो यह भी मानना पार कोई पस्तु दाने की प्रायत्यक्ता नदों । जो पहेगा कि यह चेतम (Cuciou-) है पर अपनी । स्याधीन है यह न तो किसी दूसरी चीज ही के एप्स (Freo will) में कार्य करता है। जब तक यद भासरे है पार म अपने स्वमाय ही के, क्योकि यह नहीं माम लिया जायगा कि प्रादिकारण अपनी तो निरन्तर स्वतन्त्र है। इससे यह सिराकि पेसी इल्जा से कार्य करता ई सय सक पर सम्पूर्ण प्रार ई यस्तु नहीं ओ उसमें विकार उत्पन्न कर सके, अनन्त नहीं कहा जा ममता । वाँकि यदि फोर पार भयया विकार उत्पन्न होने से रोक सके। यदि ऐसा पस्नु उसकी प्रेरक हुई तो पद यम्नु उमम प्रयाय यापन माता प्रादि-कारण की स्वाधीनता दी पड़ी हुई । 'पादे यह माना जाय कि मादिकारण छिन मायगी। अपनी इस मे दी कार्य करता है तो कार्य से प्रादि-कारण का तीसरा स्टक्षण सम्पूर्णता है। उसफे स्पमाय फा सम्मम्प दाना मिनाता है। . अर्थात् प्रादि-सारण नियमो पार क्यों से रहित दूसरी बात यह है कि हम चेतन में दो मम्मी है। यह सर्यदातिमान् पार अनन्य सम्पन्ध है।६,पार घेतन में फर्ना पार कार्य परमम्पन्य रहता

साश या कि प्रकृति का कारण पोजते पोमते ६।प्रेसन के मम्यन्ध में दो पाने पर भी है। एकना

हम प्रादि-कारण सफ जा पहुंचे पार मादि-कारण के यह लिमे मान सा प्रयाम् माना इमरी पद मादाण प्रमत, स्यतरण पार सम्पूर्ण निश्चित हुए। जिसमा मान दातार्यात् य । पाता पार मेय । तर मे तो ये लक्षण ठीक पर पुद्धि में प्रहण में परस्पर सम्पन्ध रहता है। प्रम तीन . . . .